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नमस्कार महामंत्र : प्रयोग और सिद्धि
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' णमो अरिहंताणं' - आप जब एक बार नमस्कार कर लेते हैं अर्हत् को, सिद्ध को, आचार्य को या उपाध्याय को तो उनके प्रति समर्पण का भाव बन जाता है और समर्पण का भाव बना कि गुरु आपको मिल गया और मन्त्र आपके लिए फलदायी होना शुरू हो गया । आप जानना चाहेंगे कि इसका स्वास्थ्य . से क्या सम्बन्ध है ?
प्राणशक्ति का विकास, तैजस शक्ति का विकास ही स्वास्थ्य का मूल स्रोत होता है । हमारा एक शरीर है स्थूल शरीर, जिसे परिभाषा की शब्दावली में कहते हैं- औदारिक शरीर । यह हाड़-मांस या कुछ धातुओं का बना हुआ शरीर है । क्या इतना ही है हमारा व्यक्तित्व ? क्या इतना ही है हमारा अस्तित्व ? इतना ही नहीं है । इससे और आगे है । हमारे इस शरीर के भीतर एक दूसरा शरीर है । उस शरीर का नाम है तैजस शरीर, जिसे प्राणिक शरीर, विद्युत् शरीर कहते हैं । हमारे शरीर में, आज शरीरशास्त्र की दृष्टि से, दो चीजें मुख्य होती हैं - एक विद्युत् और एक रसायन । ये दो ही हमारे सारे व्यक्तित्व का संचालन कर रहे हैं । हमारे शरीर में बिजली है । हमारे मस्तिष्क को काफी बिजली चाहिए । वह बिजली फेल हो जाए, बस मस्तिष्क भी फेल हो जाएगा। सभी तंत्र फेल हो जाएंगे । हमारे शरीर को बिजली की जरूरत होती है । यह बिजली हमारी प्राणधारा है । आज की साइंस की भाषा में उसका नाम है बिजली और जैन दर्शन की भाषा में उसका नाम है - प्राण, प्राणशक्ति । प्राणशक्ति के बारे में आज के परामनोवैज्ञानिक भी बहुत आगे बढ़ गए हैं। बहुत खोजें हो रही हैं 'वाइटल फोर्स' 'और 'वाइटल एनर्जी' के विषय में । वाइटल एनर्जी जब कम हो जाती है तो व्यक्ति का सारा जीवन बीमार होने लगता है। एक डॉक्टर कितनी ही दवा - इयां दें, अगर प्राणशक्ति के कमजोर होने पर दवाई काम करे तो कोई आदमी मरेगा हीं नहीं । हर आदमी को अमर बना दिया जाएगा । किन्तु दवाई तब तक ही काम करती है, जब तक भीतर में प्राणशक्ति प्रबल होती है । प्राणशक्ति के मन्द होने पर कोई काम नहीं होता । हमारे इस शरीर के भीतर दूसरा सूक्ष्म शरीर है- प्राणशक्ति का । वह है तैजस शरीर यानी बिजली का शरीर, प्रकाश का शरीर । मन्त्र का सम्बन्ध इस स्थूल शरीर से शुरू होता है और मन्त्र की शक्ति पहुंचती है उस तैजस शरीर तक । तेजस शक्ति को सक्रिय बनाना, प्राणशक्ति को सक्रिय बनाना, बिजली को शक्तिशाली बनाना यह मंत्र का मुख्य काम होता है ।
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