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________________ ध्यान : कठिन या सरल २८३ और ठीक व्यवस्था देने वाला चाहिए। इस दृष्टि से कहा जा सकता है कि ध्यान-साधना बहुत कठिन साधना है। दूसरा पहलू यह है कि ध्यान करना बहुत सरल साधना है। इसमें कुछ करना नहीं पड़ता। इसमें केवल स्थिर होकर बैठना पड़ता है। न चलनाफिरना, न बोलना, न सोचना, कुछ भी नहीं करना पड़ता। यह कठिन कैसे है ? कठिन तब होता जब इसमें भार उठाना होता, लम्बी यात्रा करनी होती । दुनिया में पैदल चलना, यात्रा करना, बोझ उठाना, दूकानदारी करना, खेती करना, लड़ाई करना, गृहस्थी चलाना--ये सारे कठिन कार्य हैं। ध्यान बहुत सीधा कार्य है। उसमें कुछ भी नहीं करना पड़ता । न खाना-पीना, न चलना-बोलना, कुछ भी नहीं। केवल शांत होकर बैठे रहना। कितना सरल और सीधा कार्य है यह ! ध्यान से अधिक सरल कार्य है ही नहीं दुनिया ___कठिन और सरल कुछ भी नहीं होता संसार में । यह केवल सापेक्ष कथन है। जिसकी उपयोगिता समझ में न आए, बह काम कठिन मान लिया जाता है। किसान खेती करता है । उससे पूछा जाए-क्या खेती करना कठिन काम है ? वह कहेगा-नहीं, खेती करना सबसे सरल काम है । न इसमें खाते-बही की जरूरत होती है और न सरकारी कागजात बनाने की आवश्यकता होती है। इससे अधिक सरल काम कोई भी नहीं संसार में। चार मास परिश्रम करो और आठ मास घर बैठे मौज करो। खेती की उपयोगिता बहत स्पष्ट है। जिसकी उपयोगिता का स्पष्ट अनुभव होता है, उसमें आदमी को किसी भी प्रकार की कठिनाई महसूस नहीं होती। यदि खेती की कोई उपयोगिता न हो, अनाज कोई काम न आता हो, उस स्थिति में किसान से कहा जाए कि तुम खेती करो तो वह एक ही दिन में घबरा जाएगा। वह कहेगा-इतनी तेज धूप में हल चलाना, बीज बोना, कितना कठिन काम है। वह खेती नहीं कर पाएगा। किन्तु जिसकी उपयोगिता को आदमी मान लेता है, उस कार्य में उसे कठिनाई का अनुभव नहीं होता । कठिनता और सरलता के निर्णय का एकमात्र सूत्र है-उपयोगिता और अनुपयोगिता । उपयोगी होता है वह सरल और अनुपयोगी होता है वह कठिन । ध्यान कठिन होता है उसके लिए जिसको ध्यान करने की सही विधि हस्तगत नहीं हुई है। ध्यान की तकनीक, पद्धति का बोध होना चाहिए। करने की पद्धति का बोध नहीं होता, तब प्रत्येक कार्य कठिन हो जाता है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003058
Book TitleEkla Chalo Re
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherTulsi Adhyatma Nidam Prakashan
Publication Year1985
Total Pages320
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size14 MB
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