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________________ २८२ एकला चलो रे" वह व्यक्ति भद्दे शरीर वाला हो या गंदे कपड़े पहने हुए हो । जिस व्यक्ति का आचार और विचार निर्मल नहीं है, व्यवहार क्रूरतापूर्ण है, वह कितने ही साफ-सुथरे कपड़ों में रहे, उसका आभामंडल गंदा होगा, काले रंगों वाला , भद्दा होगा । होगा, आज के आदमी का विश्वास बाहरी शुद्धि में अधिक है, भीतरी शुद्धि में कम है । वह प्रतिदिन अपने भीतर अपवित्र विचारों, वासनाओं और बुरे संस्कारों का संग्रह करता है, कितना बड़ा भण्डार भरा हुआ है । उसे खाली करना भी संभव नहीं है । परत पर परत जमती चली जाती है । इतनी परतें जम गई हैं कि उनको उखाड़ना भी सहज नहीं है । आदमी जब प्रवृत्ति में होता है तब चंचल होता है । चंचलता अपने आप में बुराई है । उस स्थिति में उसे भीतरी संस्कारों का बोध नहीं होता । जैसे ही वह स्थिर होता है, आंखें, बन्द कर बैठता है, तब भीतरी संस्कार विरोध करना प्रारम्भ कर देते हैं । भीतर में प्रतिक्रिया होती है और तब विकल्प एक-एक कर उखड़ने लगते हैं। कूड़ाकर्कट का ढेर जब जमा हुआ होता है, तब उससे उतनी बदबू नहीं आती, जितनी बदबू उखेड़ते समय आती है ध्यान में मन जब एकाग्र होता है, तब भीतर में स्थित वासनाएं उभरती हैं, क्रोध और हिंसा की भावना जागती है, ' किसी की हत्या कर डालने या चोरी करने का विचार उभरता है, और न जाने कितनी भावनाएं, कितने विचार जागते हैं और बाहर आते हैं । इन्हें देख आदमी घबरा जाता है । वह सोचता है— इतने विचार तो पहले कभी नहीं सताते थे । जब से मैंने ध्यान शुरू किया है, तब से बुरी बुरी छायाएं, आकृ-तियां सताने लग गईं । । ध्यान सताने की प्रक्रिया नहीं है । यह जमे हुए खजाने को बाहर निका लने की प्रक्रिया है । जो जमा पड़ा है, वह ध्यान के द्वारा उखड़ता है और बाहर जाना चाहता । आदमी इसे गलत समझ लेता है । यहीं ऐसी स्थिति में गुरु की आवश्यकता होती है । यदि कोई उपयुक्त गुरु नहीं मिलता तो साधक स्थिति से घबराकर जो करता है, उसे भी छोड़ देता है और यदि उपयुक्त गुरु का योग मिल जाता है, सही मार्गदर्शन मिलता है तो वह घबराता नहीं, सोचता है - बीमारी पाल रखी है, दवाई लेनी शुरू की है, रिएक्शन तो होगा ही । दवा का काम है- बीमारी को जड़ से उखाड़ना । जब जड़ें उखड़ेंगी तो सामने वाला भी प्रतिरोध करेगा, प्रतिक्रिया जताएगा । यह प्रतिक्रिया कोई बुरी बात नहीं है । उसे संभालने की जरूरत है । उसे संभालने वाला चाहिए. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003058
Book TitleEkla Chalo Re
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherTulsi Adhyatma Nidam Prakashan
Publication Year1985
Total Pages320
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size14 MB
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