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ध्यान : कठिन या सरल
२८१ है कि चेतना का आकाश शून्य है, खाली है। आंखें बन्द करते ही विकल्प के बादल मंडराने लग जाते हैं । वे गरजते हैं, बरसने की तैयारी करते हैं और उनमें बिजलियां कौंधने लगती हैं। विकल्पों का तांता टूटता ही नहीं। एक के बाद दूसरा विकल्प उठता रहता है और वह अन्तहीन बन जाता है। साधक घबरा जाता है। वह सोचता है, यह क्या हो गया ? इससे तो अच्छा होता कि ध्यान ही नहीं करते। उस समय विकल्प कहां थे ? ध्यान में इतने विकल्प कि जिनकी कल्पना भी नहीं की जा सकती। ध्यान बड़ी कठिन साधना है। ___ एक भाई आ कर बोला—मैंने ध्यान की साधना शुरू की थी, पर अब छोड़ दी है। मैंने माला जपना और सामायिक करना भी प्रारम्भ किया था, पर उन्हें भी छोड़ देना पड़ा। मैंने पूछा-क्यों ? ऐसी क्या स्थिति आ गई थी? वह बोला-जब मैं ध्यान नहीं करता, माला नहीं जपता और सामायिक नहीं करता तब अच्छा बना रहता हूं और जब ये क्रियाएं करता हूं तब गन्दा बन जाता हैं। इसलिए मैंने यह निर्णय किया है कि न करना ही अच्छा
उस भाई की बात सही है, गलत नहीं है। पर हम उस सचाई को नहीं जानते कि ऐसा क्यों होता है ? आदमी ने बहुत गंदगी एकत्रित कर रखी है। वह बाहर की सफाई बहुत करता है, पर भीतर की सफाई वह करता ही नहीं। उसे वह जरूरी भी नहीं लगती। वह बाहर से चंगा और भीतर से गंदा है। कितना गंदा !
एक अमेरिकन महिला डॉक्टर जे० सी० ट्रस्ट ने हाई फ्रीक्वेन्सी के कैमरों से फोटो लिए। वह अपनी पुस्तक 'एटम एण्ड ओरा' में लिखती है—मैंने साफ-सुथरे और सुन्दर शरीर वाले व्यक्तियों के फोटो लिए, किन्तु उनका आभामण्डल बहुत मैला, घिनौना, भद्दा, देखते ही घृणा उत्पन्न करने वाला था। यह उनके मनोभाव का प्रतीक था। ऐसे लोगों के भी फोटो लिए जो दीखने में भद्दे, मैले-कुचले, गंदे वस्त्र पहने हुए थे, किन्तु उनका आभा-मंडल उज्ज्वल, निर्मल पवित्र था। मैं यह देखकर हैरान रह गई। मैंने सोचायह क्यों? इसका समाधान यह मिला कि जिस व्यक्ति की भावना निर्मल होती है, उसका आचार पवित्र होता है, जिसका विचार शुद्ध होता है, जिसका व्यवहार करुण और अहिंसा से परिपूर्ण होता है, उस व्यक्ति का आभामंडल अत्यन्त पवित्र, निर्मल और सुन्दर चमकीलें रंगों वाला होता है, फिर भले ही
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