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________________ ध्यान : कठिन या सरल ध्यान वर्तमान विश्व का सबसे अधिक चर्चित विषय है। विज्ञान भी बहुत चचित रहा है। किन्तु ध्यान उससे भी महत्त्वपूर्ण चर्चा का विषय बन गया । विज्ञान के परिणामों को जान लेने और देख लेने के बाद मनुष्य को लगा कि जो चाहिए था, वह अब तक नहीं मिला। विज्ञान की बहुत उपलब्धियां सामने आयीं, सुख-सुविधाओं के साधन बढ़े, प्रचुर विकास हुआ, प्रगति शिखर को चूमने लगी। इतना होने पर भी मनुष्य की प्यास बुझी नहीं। वह प्यासा ही रह गया। उसकी भूख मिटी नहीं। वह भूखा ही रह गया। उसे यह अनुभव हो रहा है कि प्यास से कंठ सूखता जा रहा है और जठराग्नि अधिक प्रज्वलित हो रही है । कुछ ऐसा उपाय हो, जिससे प्यास शांत हो, भूख मिटे । उपाय की खोज प्रारम्भ हुई। प्रबुद्ध लोग अध्यात्म की ओर मुड़े और विशेषतः वे लोग मुड़े जो भौतिकता के अन्तिम बिन्दु पर पहुंच चुके थे। उन्होंने यह अनुभव किया कि मनुष्य की प्यास अध्यात्म के द्वारा ही बुझ सकती है। विज्ञान के पास इसका कोई उपाय नहीं है । इस निरुपायता से फिर अध्यात्म की ज्योति जली है, फिर ध्यान का मूल्यांकन हुआ और उसका महत्त्व बढ़ा है। इसलिए आज समूचे विश्व में विज्ञान से भी ज्यादा चर्चित विषय है ध्यान । ध्यान अध्यात्म का प्राण है। ध्यान के बिना अध्यात्म का मूल्यांकन नहीं किया जा सकता, उसे समझा और परखा नहीं जा सकता। व्यक्ति के मन में एक प्रश्न निरन्तर उभरता रहता है कि ध्यान का महत्त्व है किन्तु उसकी आराधना कठिन है। उसकी साधना सरल नहीं है। प्रश्न है कठिनता का और सरलता का। वह कठिन इसलिए लगता है कि उसके साथ कुछ पूर्व धारणाएं जुड़ी हुई हैं। उसके साथ भय की भावना जुडी हुई है। जैसे ही आदमी ध्यान करने आंखें मूंदकर बैठता है, विकल्पों का जाल-सा बिछ जाता है। जो विकल्प सामान्यतः नहीं आते, चलते-फिरते या काम करते हुए नहीं आते, अन्यान्य की चर्चा करते समय नहीं आते, वे सारे विकल्प, जानी-अनजानी स्मृतियां ध्यान में बैठते ही आने लग जाती हैं। ध्यान से पूर्व यह प्रतीत होता Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003058
Book TitleEkla Chalo Re
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherTulsi Adhyatma Nidam Prakashan
Publication Year1985
Total Pages320
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size14 MB
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