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एकला चलो रे
अपने चारों ओर कांटों का जाल बिछा लिया । शस्त्र खड़े कर दिए। वे कांटे उसे दुःख देने लगे, कष्ट देने लगे।
वह गुलाब का पौधा फिर एक साधक के पास गया और बोला-मैंने अपनी सुरक्षा के लिए कांटे ही कांटे खड़े कर दिए । उनकी चुभन मेरे कलेवर को बींध न डाले, इसलिए मैं क्या करूं? मुझे कोई उपाय बताओ। ___ साधक बोला--तुमने कांटों का जाल बिछाकर उचित काम नहीं किया। जीवन की यह पद्धति खतरनाक होती है। कांटों से न तुम्हारा भला है और न तुम्हारे पास आने वाले का भला है। तुम्हें जीवन-पद्धति को बदलना होगा। तुम अब सुगंध बिखेरो।।
गुलाब को यह बात पसन्द आ गई। उसने फूल उगाए । फूल उगे, बड़े ही सुन्दर और आकर्षक । चारों ओर सुरभि बिखरने लगी। लोग आने लगे । भीनी-भीनी और मधुर सुगन्ध में खो गए । गुलाब ने देखा । जीवन के दोनों कोण उसके सामने थे । वह दोनों को भोग चुका था।
जीवन-पद्धति भी दो प्रकार की होती है। एक जीवन-पद्धति है कांटों वाली और दूसरी. जीवन-पद्धति है फूलों वाली। जो लोग राग-द्वेष-मुक्त चेतना को नहीं जगाते, समता का अभ्यास नहीं करते, सामायिक की उपासना नहीं करते, वे अपनी सुरक्षा के लिए कांटे लगाते हैं । वे चारों ओर शस्त्रों का अंबार लगाते हैं और उन्हें सुरक्षा का साधन और भय-मुक्ति का कारण मानते हैं।
शस्त्रों से सुरक्षा होती नहीं । एक के पास कांटा है तो दूसरे के पास उस कांटे को तोड़ने वाला दूसरा बड़ा कांटा है । इस कांटों की दुनियां में कोई कांटा सबसे बड़ा नहीं है। हर कांटा छोटा होता है, जब उसके सामने बड़ा कांटा आकर खड़ा हो जाता है । इन कांटों को समाप्त किया जाता है, फूलों के विस्तार के द्वारा । हमारी जीवन-पद्धति फूलों की पद्धति बने । वह ध्यान, समता और राग-द्वेष-मुक्त चेतना के द्वारा ही संभव हो सकती है।
ध्यान का अभ्यास करने वाले यह कभी न माने कि ध्यान का मार्ग कठिनाई से मुक्त है। बड़ी कठिन है ध्यान की साधना । किन्तु यह जीवन की पद्धति को बदलने का उपक्रम है । जीवन की पद्धति को बदलना, विकास करना खतरे से खाली नहीं होता। कठिनाइयां आती हैं । जोखिम लेनी पड़ती है । इस दुनिया में ऐसा कभी नहीं हुआ कि किसी आदमी ने विकास किया हो और खतरा मोल न लिया हो। ऐसा कभी होता नहीं।
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