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________________ ध्यान : जीवन की पद्धति २७७ शुद्धि । ध्यान करने वाला व्यक्ति बदलता है। उसमें केवल यही बदलाव नहीं आता कि वह पचास मिनट या साठ मिनट तक ध्यान करता है । उसकी सारी जीवन-चर्या बदल जाती है। खान-पान बदल जाता है । रहन-सहन बदल जाता है । व्यवहार और आचरण बदल जाता है । वह फिर हर प्रवृत्ति को आय और व्यय की कसौटी पर कसता है। आज हिंसा की समस्या बहुत उग्न रूप धारण कर रही है। युद्ध छिड़ते रहते हैं, लड़ाइयां भड़कती रहती हैं। एक ही मानव-समाज में जीने वाले लोग परस्पर एक-दूसरे को मारने लग जाते हैं । एक आदमी किसी दूसरे की हत्या करता है और अपराध प्रमाणित होने पर उसे न्यायालय से आजीवन कारावास या फांसी का दण्ड मिलता है। एक आदमी को मारने पर यह सजा और उधर युद्ध के मैदान में एक सैनिक यदि अनेक सैनिकों को मौत के घाट उतार देता है तो उसे 'महावीर चक्र' जैसे पुरस्कार मिलते हैं और वह सम्मानित किया जाता है। खुले में मारने वाला अपराधी नहीं मानो जाता और छिपे-छिपे मारने वाला अपराधी माना जाता है । जीवन की यह पद्धति इसलिए विकसित हुई कि आदमी ध्यान करना नहीं जानता। जब तक आदमी ध्यान करना नहीं जानता, तब तक वह समता को नहीं जानता । समता को जाने बिना इस जीवन-पद्धति से छुटकारा नहीं हो सकता । इससे छुटकारा तब मिल सकता है जब आदमी ध्यान करना सीखे । ध्यान के द्वारा जीवन में समता का विकास होगा, समता से राग-द्वेषमुक्त चेतना जागेगी। ___ ध्यान का मूल अर्थ है-राग-द्वेष-मुक्त चेतना का अनुभव । जब तक राग-द्वेष-मुक्त चेतना का अनुभव नहीं होता, तब तक समता का अवतरण नहीं होता और जब तक समता का अवतरण नहीं होता तब तक सामायिक नहीं होती । जब तक सामायिक नहीं होती, तब तक जीवन की पद्धति नहीं बदल सकती। ____ गुलाब का पौधा कुछ समाधान चाहता था। उसे एक राजनीतिज्ञ मिला। उससे परामर्श किया । गुलाब ने पूछा-मुझे अपनी सुरक्षा के लिए क्या करना चाहिए ? राजनीतिज्ञ बोला-जैसे के साथ तैसा व्यवहार करना चाहिए । हमारी दुनिया बड़ी भयंकर है । यदि तुम अपनी सुरक्षा चाहते हो तो शस्त्रों का निर्माण करो। राजनीतिज्ञ और क्या सलाह दे सकता था ? गुलाब ने सोचा-परामर्श बहुत अच्छा है। वह प्रभाव में आ गया। उसने Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003058
Book TitleEkla Chalo Re
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherTulsi Adhyatma Nidam Prakashan
Publication Year1985
Total Pages320
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size14 MB
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