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________________ २७६ एकला चलो रे भी कम हो जाती है। जितना गहरा कायोत्सर्ग, उतनी ही प्राणवायु की खपत कम । उसकी अधिक जरूरत ही नहीं होती। ऐसी स्थिति वे प्राणवायु भले ही कम जाए फेफड़ों में, कोई चिन्ता नहीं है। चिन्ता तब होती है, जब व्यक्ति कार्य में अधिक प्रवृत्त होता है और श्वास मंद लेता है । इससे असन्तुलन पैदा होता है, अनेक गड़बड़ियां पैदा होती हैं। असंतुलन मिटाने का उपाय है-जितना काम करें, प्राणवायु भी उतनी ही मात्रा में खींचें, जिससे कि फेफड़ों को शक्ति मिले, रक्त की पूरी सफाई हो और कार्बन पूरा निकल जाए। ____ आज का युग मानसिक विकृतियों का युग है । विकृतियां क्यों पैदा होती हैं ? आज का आदमी प्रवृत्ति-बहुल हो गया है। वह इतना व्यस्त रहने लगा है कि एक क्षण की भी उसे फुर्सत नहीं है । इस व्यस्तता ने मानसिक उद्वेगों को प्रोत्साहन दिया है, मानसिक बीमारियों को जन्म दिया है। ये बीमारियां बढ़ती चली जा रही हैं । मानसिक बीमारी मस्तिष्क से ही जन्म नहीं लेती, फेफड़ों से शुरू होती है। जिस व्यक्ति के फुफ्फुस में कार्बन अधिक संचित होता है, उसके बैचेनी प्रारम्भ हो जाती है, शरीर टूटने लग जाता है, भार का अनुभव होने लगता है । यह कैसे नहीं होगा ? इनका मूल है---दूपित गैस का संचय, कार्बन का संचय । बोल-चाल की भाषा में कहते हैं---घुटनों में दर्द है, कमर और कंधे में दर्द है। दर्द कहां पैदा नहीं होता ? जिसे हमने पाल रखा है, वह समय-समय पर प्रकट होता है। यह प्रकट इसलिए होता है कि व्यक्तियों का अपानवायु दूषित है। जिसका अपानवायु दूषित है, उसके अनेक दर्द पलेंगे। यह दूषित वायु दर्द पैदा करता है, अवरोध उत्पन्न करता है । इस अपान की अशुद्धि के कारण ही नयी-नयी बीमारियां पैदा होती हैं । एक है प्राणवायु और एक है अपानवायु । नाक के द्वारा जो वायु भीतर जाती है, वह है प्राणवायु और नाभि के नीचे जो वायु है, वह है अपानवायु । अपानवायु के दूषित होने का एक बड़ा कारण है भोजन । आदमी चाहता है-खूब खाया जाए, गरिष्ठ पदार्थ खाए जाएं । वे पचें या नहीं, उसकी उसे चिन्ता नहीं है। वह अपनी जीभ को संतुष्ट करना चाहता है । वह यह चाहता हैं कि उसे प्रत्येक भोजन में स्वाद की अनुभूति हो। भोजन की इस गलत धारणा के कारण अपानवायु दूषित होता है और वह अनेक बीमारियों को जन्म देता है। शक्ति की सुरक्षा का एकमात्र उपाय है-प्राण की शुद्धि और अपान की Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003058
Book TitleEkla Chalo Re
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherTulsi Adhyatma Nidam Prakashan
Publication Year1985
Total Pages320
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size14 MB
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