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ध्यान : जीवन की पद्धति
२७५ शक्ति की भी आय होती है और व्यय होता है । जो व्यक्ति ध्यान नहीं करता वह शक्ति की आय कम करता है और व्यय अधिक करता है । जब मन चंचल होता है, तब शक्ति का व्यय अधिक होता है, आय होती ही नहीं। जिसने ध्यान नहीं सीखा, कायोत्सर्ग नहीं सीखा, वह शक्ति की आय कैसे कर पाएगा? जिसने मन को स्थिर करना नहीं सीखा, वह शक्ति की आय कम करता है, व्यय अधिक करता है । जिसने वचन को स्थिर करना नहीं सीखा, मौन नहीं सीखा, वह भी आय कम और व्यय अधिक करता है । जिसने शरीर की चंचलता को छोड़ना नहीं सीखा, कायोत्सर्ग नहीं सीखा, वह भी आय कम और व्यय अधिक करता है। ___ शरीर का क्रम बड़ा विचित्र है । आदमी बैठा है । सामने रेत है । उसकी अंगुली चलती है। वह रेत में अक्षर या चित्र उभारने लग जाता है । यह लिखना कोई सार्थक नहीं है, काम की बात नहीं है, प्रयोजन कुछ नहीं है। यह केवल चंचलता है । परन्तु क्या आप जानते हैं कि बिना प्रयोजन की इस प्रवृत्ति से शक्ति का कितना व्यय होता है ? केवल एक अंगुली ही नहीं चल रही है, उसके साथ करोड़ों-करोड़ों सेल्स (कोशिकाएं), करोड़ों-करोड़ों न्यूरोन्स सक्रिय होते हैं, तब कहीं एक लकीर खींची जाती है । रूपक की भाषा में कहा जा सकता है कि हिन्दुस्तान के सारे कारखानों के सारे मजदूर जितने नहीं हैं, उनसे अधिक मजदूर लगते हैं, तब कहीं एक छोटी-सी लकीर खींची जाती है। शक्ति का कितना व्यय ? यदि हम कायोत्सर्ग करना सीख जाएं, अनावश्यक प्रवृत्ति को छोड़ दें तो निरर्थक व्यय होने वाली शक्ति को बचा सकते हैं।
एक भाई ने पूछा-आप कहते हैं कि दीर्घ श्वास लेने से फेफड़ों को पूरी हवा मिल जाती है। हर व्यक्ति को छह लीटर हवा चाहिए। वह दीर्घ श्वास से पूरी हो जाती है। यदि श्वास दीर्घ नहीं होता है तो फेफड़ों को कम हवा मिलती है । यह ठीक है परन्तु जब हम कायोत्सर्ग करते हैं, तब श्वास दीर्घ नहीं रहता, छोटा हो जाता है, मंद पड़ जाता है, उससे हवा पूरी नहीं मिलती। तो क्या कायोत्सर्ग इस दृष्टि से अप्रोजनीय नहीं है ? __ यह प्रश्न स्वाभाविक है, किन्तु हमें यह जान लेना चाहिए कि हवा की, ऑक्सीजन की जरूरत तब अधिक होती है, जब हम' प्रवृत्ति अधिक करते हैं। जो व्यक्ति कायोत्सर्ग में स्थिर हो जाता है, उसकी मानसिक, वाचिक या कायिक प्रवृत्तियां स्वतः कम हो जाती हैं और इसलिए ऑक्सीजन की खपत
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