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________________ २७४ एकला चलो रे है । पानी में जो भी जाएगा, वह उसमें घुल-मिल जाएगा । यही बात तरल चित्त के विषय में होगी। जब चित्त तरल होता है, तब वह प्रत्येक प्रभाव से प्रभावित होता रहता है । जब पानी बर्फ बन जाता है, तब उसमें घुलनशीलता नहीं होती। जो भी डाला जाएगा, वह नीचे लुढ़क जाएगा । उसके साथ आत्मसात् नहीं हो पाएगा । यही बात गाढ़ चित्त के विषय में है। ध्यान एक प्रक्रिया है चित्त को गाढ़ बनाने की। ध्यान के द्वारा चित्त गाढ़ा बन जाता है, बर्फ जैसा बन जाता है। इस अवस्था में वह किसी भी प्रभाव से प्रभावित नहीं होता । प्रभाव आता है, टकराता है और नीचे लुढ़क जाता है । यह कभी संभव नहीं है कि प्रभाव न आए, पर यह संभव है कि चित्त उसे स्वीकार करे या न करे । जब तक चित्त को ध्यान के द्वारा गाढ़ा नहीं बना दिया जाता, तब तक आने वाले प्रभावों से हमारी मुक्ति नहीं हो सकती। ध्यान चित्त को स्थिर बनाता है । जब चित्त स्थिर बनता है, तब आदमी प्रभावों से मुक्त हो जाता है। प्रत्येक व्यक्ति मुक्त होना चाहता है, मोक्ष को प्राप्त करना चाहता है। वह मानता है कि मरने के बाद मुक्ति मिलेगी। कहां है मोक्ष की प्राप्ति इस युग में ? एक भाई ने पूछा-आज उत्तम संहनन नहीं है, वज्रऋषभनाराच संहनन नहीं है, फिर यदि मुक्ति की उत्कट अभिलाषा हो तो वह कैसे प्राप्त हो सकती है ? मैंने कहा-क्यों कामना करते हो मरने के बाद होने वाली मुक्ति की ? वह तो होगी, तब होगी । तुम चाहो तो जीते-जी मुक्ति का अनुभव कर सकते हो और मुक्त हो सकते हो । चित्त को जमा कर गाढ़ा कर लो, अपने आप अनुभव होगा कि हर क्षण मुक्ति का बीत रहा है। जो लोग ध्यान का अभ्यास करते हैं, उन्हें अनुभव होता है कि हम मुक्ति का जीवन जी रहे हैं। हमारी चेतना जब राग-द्वेष से मुक्त होती है, तब मुक्ति का अनुभव होने लग जाता है । बंधन का अनुभव तब होता है, जब चेतना राग-द्वेष से बंधी हुई होती है। ध्यान जीवन की एक पद्धति है ? जीवन-पद्धति में अर्थ-व्यवस्था का बहुत बड़ा स्थान होता है । कोई भी जीवनक्रम अर्थ-व्यवस्था के बिना नहीं चलता। अर्थ-व्यवस्था के दो मुख्य तत्त्व हैं-आय और व्यय । आय और व्यय के आधार पर जीवन का ढांचा चलता है । प्रत्येक व्यक्ति आय भी करता हैं और व्यय भी करता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003058
Book TitleEkla Chalo Re
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherTulsi Adhyatma Nidam Prakashan
Publication Year1985
Total Pages320
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size14 MB
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