SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 280
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रश्न तीन : समाधान एक २६६ के स्रोत हैं हमारी वृत्तियां या संज्ञाएं । हम प्रतिक्रिया को समाप्त करने की बात न सोचें, क्रिया को समाप्त करने की बात सोचें । छायां को मिटाने से क्या होगा ? आदमी चलेगा तो छाया पड़ेगी ही। यह कैसे हो सकता है कि आदमी चले और छाया न पड़े । प्रत्येक पदार्थ की छाया पड़ती है। आदमी प्रतिबिम्ब को जीता है और प्रतिबिम्ब से लड़ता है। प्रतिबिम्ब से लड़ने का कोई अर्थ नहीं होता । यदि हमें लड़ना है तो बिम्ब से लड़ें। प्रतिबिम्ब से न लड़ें, क्रिया से लड़ें। ध्यान का अर्थ है-क्रिया को समझना, प्रतिक्रिया से मुक्त होना । ध्यान का अर्थ है-बिम्ब को समझना, प्रतिबिम्ब से मुक्त होना। ध्यान में सबसे पहले श्वास को समझा जाता है। श्वास को समझना क्रिया को समझना है । श्वास क्रिया से जुड़ा हुआ है और सारी प्रतिक्रियाएं उसके माध्यम से बाहर आती हैं । श्वास को देखते-देखते एक क्षण ऐसा आ सकता है कि श्वास के माध्यम से उतरने वाली सारी वृत्तियां प्रत्यक्ष हो जाती हैं। ज्ञात हो जाता है कि अब क्रोध उतर रहा है। क्रोध किसके माध्यम से उतरेगा ? वह श्वास के माध्यम से उतरेगा। अहंकार भी श्वास के माध्यम से उतरेगा। यदि श्वास शान्त होता है तो न क्रोध आ सकता है और न अहंकार आ सकता है । वासना भी श्वास के माध्यम से आती है। इसलिए श्वास को समझने का अर्थ है वृत्तियों को समझना । श्वास तक पहुंचने का अर्थ है वृत्तियों तक पहुंचना । यदि पहुंच ठीक होती है सारी बातें ठीक होती हैं। यदि मनुष्य वास्तव में उलझनों को मिटाना चाहता है तो वह उलझन में फंसकर नयी उलझन पैदा न करे । उलझन को मिटाने के लिए उपयुक्त आलंबन ले । ये आलंबन हैं—श्वास शरीर, चैतन्य केन्द्र, जैविक विद्युत् । इनसे रसायनों में परिवर्तन किया जा सकता है । यदि हम तटस्थ भाव से, समभाव से सारे परिवर्तनों और तत्त्वों को देखने लग जाएं तो अनायास ही उलझनें समाप्त होने लगेंगी और ऐसा लगेगा कि सब कुछ सुलझता जा रहा है । हमारे लिए कोई उलझन नहीं है। उलझन को मिटाने के लिए यदि हम अस्वीकार करें भावी जीवन को, अस्वीकार करें सूक्ष्म जगत् को तो कोई अर्थ नहीं होगा । छोड़ दें दो क्षण के लिए भावी जीवन को, छोड़ दें पुनर्जन्म को । हमें परलोक से कोई मोह नहीं, पुनर्जन्म से कोई मोह नहीं । हम वर्तमान को समझे, वर्तमान जन्म को समझ लें । यदि इन्हें सही अर्थ में समझ लिया तो पुनर्जन्म, भावी जन्म कोई उलझन पैदा नहीं करेगा। यदि वर्तमान जीवन को नहीं समझा और बुद्धि के आधार पर केवल पुनर्जन्म की चर्चा करते Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003058
Book TitleEkla Chalo Re
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherTulsi Adhyatma Nidam Prakashan
Publication Year1985
Total Pages320
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy