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एकला चलो रे
बिना अनुमति लिये दरवाजे से कोई अन्दर नहीं आ सकता । मैंने दरवाजे पर लिख दिया है।
कैसी मूर्खतापूर्ण बात है ! बन्दर क्या कोई आदमी है कि वह निषेध को मान लेगा ? दरवाजा बन्द हो तो आदमी अन्दर नहीं आ सकता, किन्तु जो छलांग लगाकर या आकाश मार्ग से आ जाए, उसके लिए दरवाजे पर लिखी हुई आज्ञा कारगर कैसे हो सकती है ?
यह असंतोष एक बन्दर है । वह ऊपर से भी आ सकती है, नीचे से भी आ सकता है । वह भीतर से भी आ सकता है और बाहर से भी आ सकता है। वह पीछे से भी आ सकता है और आगे से भी आ सकता है। वह स्वयं नहीं आता, आदमी उसे बुलाता है। आदमी उसे इसलिए बुलाता है कि वह स्वयं पदार्थ में उलझा हुआ है। उसकी सारी चेतना पदार्थ में अटकी हुई है। वह उलझन और अटकाव वृत्तियों के कारण हो रहा है । जब तक वृत्तियों की ओर ध्यान नहीं किया जाता, तब तक इस समस्या का समाधान नहीं मिल सकता, उलझन से परे नहीं जाया जा सकता । इसलिए वृत्तियों को समझना बहुत बड़ी आवश्यकता है । वृत्तियों को समझे बिना यदि असंतोष को निकालेंगे तो वह पुनः आ जाएगा। कोई एक निमित्त मिला, असंतोष निकल गया । दूसरा निमित्त मिला, असंतोष पुनः उभर आया । वह मिटता रहता है, उभरता रहता है।
डॉक्टर ने रोगी से कहा--मैंने चिकित्सा की। आपका बुखार उतर गया । अब फीस दे दें। सेठ ने चेक दे दिया। दो दिन बाद डॉक्टर बोलाअरे, उस चेक का भुगतान ही नहीं हुआ । बैंक वालों ने उसे लौटा दिया। वह वापस आ गया । वह बोला-अरे, इसमें क्या बात है ? चेक वापस आ गया तो देखिए, बुखार भी वापस आ गया।' __ चेक वापस आता है, बुखार वापस आता है, असंतोष भी वापस आता है। सारी उलझनों से मुक्त होने का एकमात्र उपाय है वृत्तियों का ज्ञान । वृत्तियों के मूल घटक हैं विभिन्न रसायन । उन रसायनों के कारण व्यक्ति में एक प्रकार की वृत्ति उभरती है और एक प्रकार का विचार बनता है, कल्पना बनती है । आदमी उस विचार और. कल्पना को समाप्त करना चाहता है, किन्तु वृत्ति को समाप्त करना नहीं चाहता । जब तक वृत्ति समाप्त नहीं होती, तब तक रसायन बनते रहते हैं और वे व्यक्ति के विचारों और व्यवहारों को प्रभावित करते रहते हैं । आचरण, व्यवहार और विचार-ये सब प्रतिक्रियाएं हैं । मूल क्रिया
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