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प्रश्न तीन : समाधान एक होते हैं । सारे बिन्दुओं पर एक साथ विकास नहीं हो सकता । विकास या प्रगति एक-एक बिन्दु को पार करती जाती है और आगे से आगे यह क्रम चलता रहता है।
प्रगति और प्रतिगति का चक्र निरंतर चलता रहता है। कुछेक सौरमंडलों से विशेष विकिरण होते हैं, ग्रहों का विशेष प्रभाव होता है। कभीकभी ग्रहों-नक्षत्रों की ऐसी अनुकूल स्थिति बनती है कि विश्व में प्रगति की लहर आ जाती है और कभी-कभी उनकी ऐसी प्रतिकूल स्थिति बनती है कि प्रलय की स्थिति उत्पन्न हो जाती है। उस समय सारी प्रगतियां समाप्त हों जाती हैं, आदमी आदिम युग का आदमी बन जाता है । आदिम युग का आदमी और विकसित युग का आदमी—ये दो अवस्थाएं हैं आदमी की। ये दोनों अवस्थाएं सौरमंडल से प्रभावित अवस्थाएं हैं, इसलिए यह मानने का भी कोई कारण नहीं है कि अतीत में नहीं हुई और यह मानने का भी कोई कारण नहीं है कि चाल प्रगति का भविष्य में विकास नहीं होगा। निर्माण
और नाश-यह चक्र चलता रहता है। इस चक्र को यदि सम्यक् अवगति रहती है तो आदमी कहीं नहीं उलझता । ___ आज का आदमी असंतुष्ट है। संतोष इस जगत् में कम संभव है, क्योंकि असंतोष को उभारने वाले तत्त्व यहां बहुत अधिक हैं । बाहर के जगत् में संतोष खोजना भ्रान्ति है। संतोष केवल अन्तर् जगत् में प्रवेश पाने पर ही हो सकता है। जिस व्यक्ति ने साधना के द्वारा, ध्यान की आराधना के द्वारा अपने आपको जानने का प्रयत्न नहीं किया, उसके लिए संतोष की संभावनाएं कम रहती हैं। अपने आपको जानने का अर्थ है-चेतन के जगत् में चला जाना । संतोष केवल चेतना के जगत् में है, पदार्थ के जगत् में संतोष नहीं हो सकता। उसमें तृष्णा बढ़ती जाती है, असंतोष उभरता चला जाता है। असंतोष बाहर से भी आता है और भीतर से आता । चेतना में यह नहीं होता है । असंतोष के लिए आने के द्वार अनेक हैं । कहीं रुकावट नहीं है। ___ आदमी एक होटल में ठहरा । कमरे में गया । सारी खिड़कियां खोले बैठ गया । खिड़की से बन्दर आ गया। आदमी ने उसे निकाला । थोड़े समय पश्चात् वह वापस आ गया। एक नहीं, अनेक बन्दर आने-जाने लगे। वह परेशान हो गया। वह मैनेजर के पास जाकर बोला-बन्दर बहुत परेशान कर रहे हैं । कैसे रहा जा सकता है यहां ? बोला-चिन्ता मत करो।
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