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________________ एकला चलो रे की वैज्ञानिक उपलब्धियों को भूल केवल शब्दों की रटन करता रहेगा । वे शब्द अर्थहीन हो जाएंगे । तब आदमी वायुयान की यात्रा को, रेडियो प्रसारण और वायरलेस आदि को केवल गप्पे मानेगा । वह यह कभी विश्वास नहीं करेगा कि हमारे पूर्वज सुदूर देशों की यात्रा वायुयान में करते थे । दूरदूर की दुनिया के कोने में बैठे लोग रेडियो के द्वारा समाचार सुन लेते थे । बिना तार के ही हजारों मिलों पर बैठे लोगों से इस प्रकार बातचीत हो जाती थी, मानो वे आमने-सामने बैठे हों। ये बातें कभी समझ में नहीं आएंगी । हजार वर्ष बाद आने वाली पीढ़ी कहेगी, हमारे पूर्वज गप्पें हांकने में अग्रज थे । उन्होंने बहुत मिथ्या बातें लिखी हैं । इस प्रकार विज्ञान की सारी उपलब्धियां माइथोलॉजी बन जाएगी, पौराणिक कहानियां मात्र रह जाएगी। हमने भी अतीत के साथ यही किया है । अतीत के विकास की बातें, वैज्ञानिक उपलब्धियां, ज्ञान और प्रजा का विकास-ये सब आज हमारे लिए पौराणिक कहानियां मात्र बनकर रह गई है। उनकी यथार्थता में हमारा तनिक भी विश्वास नहीं है। किन्तु साथ-साथ आज का बुद्धिवादी आदमी यह सोचने के लिए बाध्य हो रहा है कि यदि अतीत में प्रगति नहीं होती तो आज जो कल्पनाएं और संभावनाएं हो रही हैं वे शून्य में नहीं होती। जो वर्णन प्राप्त हैं, उनका आधार अवश्य ही होना चाहिए। आज वातानुकूलित भवनों की चर्चा है। क्या अतीत में वैसा कुछ नहीं था ? क्या यह नयी कल्पना और नया उद्भव है ? नहीं। अतीत में भी वैसे भवन निर्मित होते थे, जो सब ऋतुओं के लिए सुखदायी होते थे । गर्मी में वे भवन ठंडे और सर्दी में गर्म होते थे। वर्षा ऋतु में वे सीलन से परे होते थे । उन भवनों को 'शीतगृह' कहा जाता था। उन पर किसी भी ऋतु विशेष का प्रभाव नहीं होता था। ऐसे वस्त्रों का निर्माण भी होता था, जो सर्दी में गर्म और गर्मी में ठंडे होते थे । ऐसे भी वस्त्र थे जो अग्नि में नही जलते थे । ऐसे कंबल भी बनाए जाते जो एक अंगूठी के छेद से निकाले जा सकते थे। कितने महीन होते थे वे कंबल ! पर वे भयंकर सर्दी से बचाने में सक्षम होते थे । आज हम इन सबको कल्पनाएं मानकर टाल देते हैं । यह हमारा बुद्धि-दौर्बल्य प्रत्येक युग में आदमी प्रगति करता है । अतीत में प्रगति हुई थी। आज भी हो रही है । और भविष्य में भी होती रहेगी। प्रगति के अनन्त बिन्दु Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003058
Book TitleEkla Chalo Re
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherTulsi Adhyatma Nidam Prakashan
Publication Year1985
Total Pages320
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size14 MB
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