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प्रश्न तीन : समाधान एक
मेरे सामने तीन प्रश्न हैं ।
पहला प्रश्न है- -आज का मनुष्य प्रगति करना चाहता है । सदा से वह प्रगति करने की चाह से चरण बढ़ाता रहा है । उसका झुकाव बाह्य जगत् की ओर अधिक है, अन्तर् जगत् की ओर नहीं है । पहले भी उसकी यही स्थिति थी। आज भी यही स्थिति है । वह इस स्थिति को बहुत महत्त्व देता है । क्या उसे अन्तर् जगत् की जानकारी नहीं थी ? है ? यदि थी, है, तो ऐसा क्यों ?
दूसरा प्रश्न है- समय गतिशील है । समय के साथ-साथ मनुष्य प्रगति कर रहा है। जो प्रगति आज दिखाई दे रही है, पहले थी या नहीं ? यदि थी तो उसकी गति अवरुद्ध क्यों हुई ? तीसरा प्रश्न है- -आज का मनुष्य असंतुष्ट दिखायी देता है, क्योंकि "उसका मन बार-बार इस बात में उलझ जाता है कि मरने के बाद क्या होगा ? परलोक किसने देखा है ? स्वर्ग और नरक को देखकर कौन लौटा है ? इस विचारधारा के आधार पर वह मौज-मस्ती के लिए नये-नये उपक्रम करता रहता है । फलस्वरूप वह और अधिक उलझनों में फंसा है, फंसता जा रहा है । साथ-साथ वह दीर्घं और आनन्दमय जीवन की खोज भी कर रहा है । मानव इन उलझनों से कैसे मुक्त हो सकता है ? वह निरापद और आनंदमय. दीर्घ जीवन कैसे प्राप्त कर सकता है ?
ये तीन प्रश्न हैं। तीनों का समाधान एक है और वह भी केवल तीन शब्दों में - 'आदमी जानता नहीं ।' उसका उत्तर एक है । यदि आदमी जानता तो अन्तर् जगत् को अस्वीकार नहीं करता । यदि आदमी जानता तो अतीत की प्रगति को नजरंदाज नहीं करता । यदि आदमी जानता तो उलझनों में नहीं फंसता । उलझनों में वह इसलिए फंसा है, फंसता है कि वह जानता नहीं । अतीत को इसलिए नकार रहा है कि वह जानता नहीं । अन्तर् जगत् को इसलिए अस्वीकार कर रहा है कि वह जानता नहीं ।
हम स्थूल जगत् में जीते हैं । स्थूल जगत् को ग्रहण करने का माध्यम हैं- इन्द्रियां । इनके माध्यम से ही स्थूल जगत् के साथ हमारा संपर्क बना हुआ है,
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