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एकला चलो रे
कुछ ऐसी पद्धतियां विकसित की हैं पानी को साफ करने की, जिसमें किसी पदार्थ की जरूरत नहीं होती। केवल बर्तनों को बदल दें, कांच के बर्तन, उनके आकारों को बदल दें और धूप में पानी रख दें इन बर्तनों में। पानी अपने आप साफ हो जाएगा। कोई वस्तु डालने की जरूरत नहीं। पानी बिलकुल साफ हो जाता है । अभी-अभी इन पद्धतियों के बारे में काफी खोजें हुई हैं। दो बातें हैं- एक सूर्य का आतप और दूसरा है संस्थान । संस्थान की विशेषता, यंत्र की विशेषता, रेखाओं की विशेषता और मुद्रा की विशेषता। विभिन्न मुद्राओं में, विभिन्न आसनों में आतापना का प्रयोग विभिन्न प्रकार के परिणाम लाता है । ये तपस्या के कुछेक प्रयोग हैं। ये प्रयोग सहिष्णुता की शक्ति को बढ़ाते हैं, संकल्प-शक्ति को विकसित करते हैं। इनसे साधना के प्रति और अधिक आकर्षण बढ़ता है और साथ-साथ स्वास्थ्य की समस्याएं भी सुलझती हैं।
सहिष्णुता के विकास के लिए कोई साधक सूर्य के आतप का प्रयोग करे तो कब, कितना और किस आसन में करना चाहिए, यह एक प्रश्न है । प्रारंभ करने वाले के लिए प्रातःकाल सूर्योदय से लेकर एक घंटे तक यह प्रयोग किया जा सकता है। कायोत्सर्ग की मुद्रा (लेटे-लेटे) या पद्मासन की मुद्रा लाभप्रद होती है। प्रारम्भ में आतप का सेवन दस-पन्द्रह मिनट तक लिया जाए और फिर धीरे-धीरे उसे बढ़ाकर एक घंटा तक खींचा जा सकता है।
हम ध्यान, आसन, तपस्या-इन सबको केवल एक रूढ़ धार्मिक दृष्टिकोण से न देखें, किन्तु इन सबका हमारे जीवन में कितना मूल्य है, इसको भी समझें । एक व्यक्ति जो सफल जीवन जीना चाहे, जो कुछ करना चाहे, केवल स्वार्थ का जीवन ही न जीना चाहे, जीवन में अपने व्यक्तित्व को कर्तृत्व को कुछ नये आयाम देना चाहे, उस व्यक्ति के लिए इन सब प्रयोगों का मूल्यांकन करना आवश्यक है।
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