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________________ २६२ एकला चलो रे इसलिए इस शरीर को कोई अस्वीकार नहीं करता, यथार्थ को भी अस्वीकार नहीं करता । किन्तु प्रश्न है कि परमाणु को कौन स्वीकार करता है ? जब तक परमाणु की खोज नहीं हुई, परमाणु को कौन स्वीकार करता था ? हमारा सूक्ष्म जगत् स्थूल जगत् में छिपा हुआ है। पर्दे के पीछे जो होता है, वह कभी जाना नहीं जाता । जाना वही जाता है, जो उभरकर पर्दे के ऊपर आ जाता है । फिल्म के फीते पर कितने चित्र होते हैं, किसी को पता नहीं चलता, किन्तु जब वे परदे पर प्रतिबिम्बित होते हैं, तब आश्चर्य होता है कि छोटे-से फीते पर जितने बड़े-बड़े चित्र हैं ? पहाड़ों, नदियों, मनुष्यों और पशु-पक्षियों के हजारों-हजारों चित्र चित्रपट पर उतर जाते हैं । आदमी आश्चर्य से भर जाता है । हमारा बहुत बड़ा जगत् सूक्ष्म में छिपा हुआ है । हमारा आकाश-मण्डल सूक्ष्म प्रतिबिम्बों का अनन्त भण्डार है । यदि वे प्रतिfara बड़े आकार में प्रस्तुत हों, तो आदमी आश्चर्य से स्तब्ध हो जाए । जितने भी महायुद्ध आज तक हुए हैं. जितनी भी घटनाएं घटित हुई हैं, जितने भी प्रसंग महावीर, बुद्ध और राम के समय में हुए हैं, उन सबके प्रतिबिम्ब आकाशीय रेकार्ड में संचित पड़े हैं । वे अत्यन्त सूक्ष्म हैं, इसलिए इन आंखों से नहीं देखे जाते । समूचा आकाश इन सूक्ष्म चित्रांकनों से भरा पड़ा है। यदि इन्हें बड़ा आकार दिया जाए तो हम यहां बैठे-बैठे उन सबको प्रत्यक्ष देख सकते हैं । सूक्ष्म को पकड़ने का साधन हमारे पास नहीं है । हमारी इन्द्रियां स्थूल को ही पकड़ पाती हैं । हमारा सूक्ष्म शरीर भी इस स्थूल शरीर की छाया के नीचे दबा पड़ा है | किसी को पता नहीं चलता । आदमी जानता है केवल चमड़ी को । स्थूल शरीर को भी पूरा कौन जानता है ? आदमी केवल जान पाता है चमड़ी को, रूप-रंग और आकृति को । बस, हमारे लिए इतना ही तो है आदमी । इससे आगे हमारे लिए कहां है आदमी ? शरीर के भीतर रक्त है, उसे भी हम नहीं देख पाते । शरीर के भीतर मांस है, उसे भी हम नहीं देख पाते । हड्डियां भी हमारे सामने नहीं | मज्जा और गहरे में छिपी होती है । स्थूल शरीर की धातुओं को भी हम नहीं जान पाते तो फिर सूक्ष्म शरीर की बात ही क्या ? तैजस शरीर और कार्मण शरीर को कैसे जान सकते हैं ? संस्कारों और अन्तर् जगत् को कैसे जान सकते हैं ? मुझे आश्चर्य नहीं होता, यदि आदमी अन्तर् जगत् को नहीं जानता । आश्चर्य यह होता है कि आदमी अभी तक स्थूल जगत् को बाह्य जगत् को भी नहीं जानता । चमड़ी को जानने के लिए भी सूक्ष्मवीक्षण यंत्र का प्रयोग करना होता है 1 1 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003058
Book TitleEkla Chalo Re
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherTulsi Adhyatma Nidam Prakashan
Publication Year1985
Total Pages320
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size14 MB
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