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एकला चलो रे
प्रियता और अप्रियता पर भी हमारा प्रहार हो जायेगा। अब यह स्थिति है कि नमकीन (नमक वाला) भोजन करते हैं तो प्रिय लगता है। और कभी भूल से रसोई बनाने वाली नमक नहीं डालती, वह भोजन थाली में परोसा जाता है, एक कौर लिया जाता है, तत्काल अप्रियता की बात आती है । थोड़ा शान्त व्यक्ति होता है तो सहन कर लेता है और ऊपर से ले लेता है। जो उत्तेजित प्रकृति का होता है तो थाली को ठोकर मार देता है। थाली कहीं जाती है और भोजन कहीं जाता है । दस-बीस गालियां ऊपर से और बक देता है । अप्रियता जागती है । अप्रियता इसलिए जागती है कि हमने प्रियता को पाल रखा है। प्रियता को पालने का मतलब है अप्रियता को पालना और अप्रियता को पालने का मतलब है प्रियता को पालना । प्रियता और अप्रियता को अलग-अलग नहीं किया जा सकता, वास्तव में दोनों एक हैं । एक अवस्था में जो प्रियता होती है, दूसरी अवस्था में वही अप्रियता बन जाती है । हमारा प्रियता का संस्कार पुष्ट है तो अप्रियता का संस्कार भी पुष्ट होगा और राग का संस्कार पुष्ट है तो द्वेष का संस्कार भी पुष्ट होगा। द्वेष का संस्कार पुष्ट है तो राग का संस्कार भी पुष्ट होगा। राग और द्वेष दो नहीं हैं, वास्तव में एक ही बात है । अनुयोगद्वार सूत्र में बहुत सुन्दर ढंग से समझाया गया है कि मूल है राग, केवल राग । राग होता है इसलिए द्वेष होता है । द्वैष का अपना कोई मूल्य नहीं है, अपना कोई अस्तित्व नहीं है। द्वेष राग के कन्धे पर चढ़कर चलता है । हम प्रियता पर प्रहार करें। जो हमें प्रिय है, उस प्रिय का वर्जन करें, त्याग करें, एक महत्त्वपूर्ण प्रयोग होगा। अस्वाद का प्रयोग होगा। यह स्थिति बन जाये कि नमक का वर्जन किया । भोजन में कोई फर्क नहीं पड़ा, खाने में कोई अन्तर नहीं आया। और यह अनुभव नहीं किया कि आज तो कुछ नीरस भोजन कर रहा हूं या कमजोर भोजन कर रहा है । यह अस्वाद का प्रयोग है, जिसमें चीनी न हो और जिसमें नमक न हो। कभी चीनी को छोड़ें, कभी नमक को छोड़ें। तीसरा प्रयोग यह भी हो सकता है-कभी अलग-अलग खाया जाए। जैसे रोटी खाने के लिए साग जरूरी होता है । साग न हो तो रोटी कैसे खायी जाये ? फुलका है तो साग चाहिए, व्यंजन चाहिए । उसके बिना कैसे खायी जाये ? जब अस्वाद का प्रयोग करना है तो रोटी अलग और साग अलग। क्योंकि साग जरूरी हाता है, यह तो ठीक बात है। पर इसमें तो फर्क नहीं पड़ेगा कि अलगअलग खाया जाये, पूर्ति तो हो जाएगी। अलग खाने का मतलब है अस्वाद
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