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सहिष्णुता के प्रयोग
२५५ हैं-स्त्री-कथा, भक्त-कथा (भोजन की कथा), देश-कथा और राज-कथा । आदमी स्त्री सम्बन्धी चर्चा करता है, वासना सम्बन्धी चर्चा करता है। वह “भोजन की चर्चा, देश की चर्चा और राज्य की चर्चा में रस लेता है । इन सब में भी भोजन की चर्चा मुख्य होती है। यदि हम नमक के परित्याग से आहार की चर्चा का नियमन कर लेते हैं तो शेष चर्चाओं का रस भी क्षीण होने लगता है । बांध में यदि एक छेद कर दिया जाये तो एक दिन बांध टूट सकता है, सारा पानी बहकर बाहर जा सकता है। राग-द्वेष या प्रियता-अप्रियता का दृढ़ बांध है । उसमें एक स्थान पर छेद कर देने से वह बांध टूट सकता
__ एक विशेष बात है। एक डॉक्टर ने कहा था कि यदि बच्चों को नमक न दिया जाये तो वह मर सकता है। अधिक नमक खाने से भी हानियां होती हैं-दोनों रोग हैं। नमक शरीर के लिए आवश्यक है। यदि शरीर में लवण न हो तो शरीर में विष अधिक जमा हो जाता है। किन्तु यहां यह विवेक होना चाहिए कि खनिज नमक आवश्यक नहीं है । साग-सब्जी और फलों में स्वाभाविक रूप से प्राप्त नमक उपयोगी है । यह नमक घुल जाता है । कृत्रिम नमक घुलता नहीं । नमक को बाहर निकालने के लिए गुर्दे को बहत काम करना पड़ता है। वह खराब हो जाता है। कृत्रिम नमक किसी भी अवस्था में उपयोगी नहीं माना जा सकता । जैसे शरीर के लिए नमक आवश्यक होता है वैसे ही शक्ति के लिए चीनी आवश्यक होती है। किन्तु यह सफेद चीनी नहीं। चीनी तो सहज प्राप्त होती है । दूध में चीनी होती है। फिर चीनी में चीनी मिलाई जाती है, तो यह कहावत चरितार्थ होती है-टोपी पर टोपला । दूध में तो वैसी ही चीनी होती है, फिर दूसरी चीनी की जरूरत क्या है ? उन लोगों को स्वाद का कभी पता नहीं चलता जो दूध में चीनी डालते हैं। कुछ लोग तो इतनी डालते हैं कि शायद दूध का स्वाद तो बेचारा कहां रहे, चीनी का स्वाद भी पूरा न रहे। अधिक चीनी से अम्लता बन जाती है । बहुत चीनी के सेवन से बड़ी हानियां होती हैं। अति मात्रा में चीनी के प्रयोग से बहुत बीमारियां पैदा होती हैं । अतः चीनी का प्रयोग छोड़ा जाये । नमक-वर्जन और चीनी-वर्जन । इसका परिणाम यह होगा कि अस्वाद का प्रयोग होगा । हम अस्वाद की दृष्टि से प्रयोग करें। अन्य बातों को गौण करें । अस्वाद की दृष्टि से प्रयोग करें कि दूध में चीनी नहीं, पानी है। प्रयोग करके देखें । रोटी में नमक नहीं डालना है, प्रयोग करके देखें । फिर
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