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________________ २५२ एकला चलो रे बढ़े ? प्रयोग करना होगा, और इसके लिए भी भोजन का प्रयोग बहुत महत्त्वपूर्ण है । आचारांग का एक सूत्र है-साधक को दो अन्तों से परिचित होना चाहिए । एक राग और दूसरा द्वेष । एक प्रियता और दूसरी अप्रियता। ये दो छोर हैं। हमारी सारी प्रवृत्तियों के दो छोर हैं। कोई भी प्रवृत्ति होती है, वह राग से शुरू होती है या द्वेष से शुरू होती है। वह राग में समाप्त होती है, या द्वेष में समाप्त होती है। ये दोनों छोर हैं। आदि-बिन्दु में राग और द्वेष, प्रियता और अप्रियता। समाप्ति में भी दोनों बिन्दु हैं-प्रियता और अप्रियता, राग और द्वेष । साधक वह होता है, जो प्रियता और अप्रियता-इन दोनों छोरों के बीच में नहीं रहता। इनसे परे हो जाता है । जिसको प्रवृत्ति के आदि-बिन्दु में भी राग नहीं, द्वेष नहीं, जिसकी परिसमाप्ति में भी राग नहीं, द्वेष नहीं, प्रियता और अप्रियता नहीं, वह साधक होता है । यथार्थ को हम अस्वीकार नहीं कर सकते, भोजन को अस्वीकार नहीं कर सकते । वह यथार्थ है । आहार करना एक यथार्थ की समस्या का समाधान है। किन्तु प्रियता और अप्रियता-ये दोनों आरोपित हैं। हम आरोपित करते हैं। हमने ऐसा मान लिया कि जिह्वा को स्वाद मिलना चाहिए । जो जिह्वा के ज्ञान-तन्तु हैं उन्हें स्वाद मिले तो हमें अच्छा लगता है, न मिले तो हमें बुरा लगता है। हमने उसके साथ प्रियता और अप्रियता का भाव जोड़ रखा है। चीनी, नमक और चिकनाई ये तीनों भोजन के अनिवार्य अंग बने हुए हैं---इन के कारण अनेक रोग उत्पन्न होते हैं, यह सब नहीं जानते । हृदय की बीमारी के लिए तीनों निषिद्ध माने जाते हैं। बहुत चीनी का प्रयोग भी न हो, बहुत चिकनाई का प्रयोग भी न हो। और नमक का प्रयोग सर्वया न हो तो बहुत अच्छा है। हृदय की बीमारी वाले चीनी, चिकनाई को तो शायद नहीं छोड़ते होंगे, किन्तु नमक तो सर्वथा निषिद्ध होता है। नमक का तो हमारे शरीर के लिए कोई उपयोग ही नहीं है। पता नहीं, यह कैसे चला ? यह नमक जो खनिज है, कृत्रिम है, इसका कोई उपयोग नहीं है । नमक शरीर के लिए उपयोगी होता है किन्तु वह नमक, जो शाक, भाजी व फलों में मिलता है । वह प्राकृतिक लक्षण है । वह शरीर में घुल जाता है। यह कृत्रिम नमक उपयोगी नहीं होता। यह शरीर में विकार पैदा करता है। उच्च रक्तचाप नमक से होता है । और भी अनेक बीमारियां नमक के कारण होती हैं। पर एक बात बहुत प्रसिद्ध है कि वह क्या भोजन जिसमें नमक भी न हो। इतना मूल्य मिल गया कि भोजन का मतलब ही नमक है। यदि नमक नहीं तो Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003058
Book TitleEkla Chalo Re
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherTulsi Adhyatma Nidam Prakashan
Publication Year1985
Total Pages320
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size14 MB
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