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सहिष्णुता के प्रयोग
रत्न की परीक्षा करने वाला केवल पुस्तकें नहीं पढ़ता, रत्नों को देखता है । पुस्तक पढ़ने वाला कभी कुशल जौहरी नहीं बन सकता । पुस्तक न पढ़ने वाला, केवल रत्नों को देखने वाला, निरीक्षण करने वाला, जांचने वाला कुशल जौहरी बन सकता है । जो बात अभ्यास से आती है, वह सिद्धांत से नहीं आती । सिद्धांत एक सुविधा है । जान लेने पर अभ्यास में सुविधा होती है । इसलिए सिद्धांत का भी मूल्य होता है । किन्तु वास्तविक मूल्य है अभ्यास का, प्रयोग का । जब हम अभ्यास करते हैं तब अनजानी बातें स्वयं जान लीं जाती हैं । जो बातें पुस्तकों में नहीं होतीं, वे बातें भी जान ली जाती हैं ।' पुस्तकों का निर्माण उन लोगों ने किया है, जो पढ़े-लिखे नहीं थे, किन्तु अभ्यासी थे । अभ्यास में जो फलित हुआ, वह पुस्तकों में आ गया । कर्मजा - बुद्धि का जितना मूल्य है, उतना दूसरी बुद्धि का मूल्य नहीं भी हो सकता है । कर्मजाबुद्धि का बहुत बड़ा मूल्य है । कर्म करते-करते जो बुद्धि पैदा होती है, वह बहुत काम की होती | साधना के क्षेत्र में ऐसा ही है । यदि हम केवल सिद्धान्त को जानें तो बात पूरी बनती नहीं । बहुत लोग आते हैं, जल्दी में आते है और कहते हैं कि मन बहुत चपल है, कैसे ठीक हो, बता दें। मैं कहता हूं यह कोई बुद्धि का व्यायाम नहीं है । बता भी दूंगा तो इससे कोई लाभ नहीं होगा । यदि समस्या का समाधान करना है तो अभ्यास करो, सामने अभ्यास करो। फिर पूछने की जरूरत भी नहीं होगी । किन्तु हमारी आदतें ही ऐसी हैं कि हम अभ्यास करना नहीं चाहते । दो टूक जवाब चाहते हैं, उत्तर चाहते हैं प्रश्न का । प्रश्न और उत्तर में तो तर्क की बात आ जाएगी प्रश्न एक तर्क है और फिर उसका उत्तर होगा प्रतितर्क । तर्क के प्रति तर्क । लाभ कुछ भी नहीं होगा । अभ्यास का हम मूल्यांकन करें । साधना स्वयं एक अभ्यास है । साधना का सिद्धान्त भी है और साधना का अभ्यास भी है, प्रयोग भी है । हम प्रयोग करें । कहां से शुरू करें साधना का प्रयोग ? किस बिन्दु से शुरू करें ? वही प्रश्न आएगा । भोजन से शुरू करें । सहिष्णुता की साधना करनी है, शक्ति के विकास की साधना करनी है । सहिष्णुता कैसे
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