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________________ २५० एकला चलो रे यह बहुत महत्त्वपूर्ण है । आहार का और ब्रह्मचर्य का बहुत गहरा संबंध है । जिस व्यक्ति ने गहराई के साथ इस विषय पर विचार नहीं किया, आहार को यथार्थ मूल्य नहीं दिया, साधना में आहार का कितना मूल्य होता है, उसे नहीं जाना, वह कैसे ब्रह्मचारी हो सकता है ? मैं तो नहीं समझ पाता । स्वास्थ्य की दृष्टि से आहार का बहुत बड़ा मूल्य है । शारीरिक स्वास्थ्य के लिए. उसका इतना मूल्य है तो मानसिक और आध्यात्मिक स्वास्थ्य के लिए उसका कितना मूल्य होगा, यह सब नहीं जानते । कुछ लोग पागल बन जाते हैं । पहले तो यही माना जाता था कि स्नायु-संस्थान दुर्बल हो गया या और कोई आघात लगा कि पागल बन गया। किन्तु आज आहार-शास्त्रीय खोजों ने अनेक रहस्यों का उद्घाटन किया है। आहार-शास्त्रियों का कहना है कि अपोषण और कुपोषण के कारण भी मनुष्य पागल बनता है । पूरा पोषण नहीं मिलता तो पागल बन जाता है। कुपोषण मिलता है तो पागल बन जाता है । आहार का संबंध तो हमारे समूचे जीवन के साथ जुड़ा हुआ है । प्रारंभ से अन्त तक उसका परिणाम हमें परिलक्षित होता है। भगवान् महावीर ने साधना के प्रथम चरण में भी आहार को बहुत महत्त्व दिया। तपस्या के बाहर प्रकार हैं । तपस्या शुरू कहां से होती है ? आहार के संबंध से शुरू होती है । बारह प्रकार में से चार प्रकार आहार से सम्बन्धित हैं—अनशन, ऊनोदरी, वृत्ति-संक्षेप और रस-परित्याग । चारों का संबंध है भोजन से । ब्रह्मचर्य में भी सबसे पहले 'अवि णिब्बलासए'---'दुर्बल आहार करो, निर्बल आहार करो।' यहां से साधना शुरू होती है। यह बहुत बड़ा विषय है । यह संभव नहीं कि आज इस पर पूरी चर्चा हो सके । आज इतना ही। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003058
Book TitleEkla Chalo Re
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherTulsi Adhyatma Nidam Prakashan
Publication Year1985
Total Pages320
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size14 MB
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