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आध्यात्मिक स्वास्थ्य
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यहां से अचपलता शुरू होती है । पद्मलेश्या वाला व्यक्ति प्रशान्त होता है। शुक्ल-लेश्या वाला व्यक्ति उपशान्त होता है । ये तीन लेश्याएं हैं, जिनके लिए निर्विकल्पता, निर्विचारता, एकाग्रता की बात संभव हो सकती है । हम एक ही मार्ग का आलंबन लें, एक ही बात का चुनाव करें, यह कोई मनोवैज्ञानिक बात नहीं होती । मैं सोचता हूं कि ध्यान करने वाले व्यक्तियों को भी अपना निर्णय लेना चाहिए। किस प्रकार की प्रवृत्ति है ? प्रमादी प्रवृत्ति है या चंचलता की प्रवृत्ति है या कुछ शांति की प्रवृत्ति है ? उनके लिए अलगअलग आलंबनों का सहारा लेना उचित होगा । जो लोग बहुत प्रमादी होते हैं उनके लिए बोल-बोलकर जप करना अच्छा रास्ता होगा । बोल-बोलकर जप करें, मौखिक । मानसिक नहीं, वाचिक । वाचिक जप करें। करते-करते ऐसी स्थिति आ सकती है कि वे आगे बढ़ जाएं। यह सबसे अच्छा मार्ग होगा | भजनकीर्तन आदि की प्रवृत्ति उन लोगों के लिए चली है जिन लोगों में इस प्रकार की तामसिक भावना थी । वे जानते ही नहीं थे कि मन चंचल है, इसे कैसे ठीक किया जाये ? जिनका मन बहुत चंचल है, उन्हें श्वास की क्रिया का आलंबन लेना चाहिए। और मानसिक जप के साथ श्वास की प्रक्रिया चले । एक नथुने से श्वास लें, दूसरे से छोड़ें। मानसिक जप चलता रहे । यह एक आलंबन हो सकता है मन की चंचलता को कम करने का । यह अचंचलता नहीं है, निष्क्रियता नहीं है । यह सक्रिय ध्यान है । चंचलता है, पर चंचलता को एक दिशा दे दी, एक रास्ता दे दिया, एक आलंबन दे दिया कि इस आलंबन पर चंचल बनो, इससे हटकर चंचल मत बनो ।
तीसरा मार्ग होता है— अचंचलता का, एकाग्रता का । तेजोलेश्या वाले व्यक्ति के लिए एकाग्रता का आलंबन किया जाये । नासाग्र पर ध्यान करो तथा दस मिनट तक लगातार एक अग्र को देखते जाओ । ज्योति केन्द्र पर ध्यान करो । दस मिनट तक लगातार ज्योति केन्द्र पर एकाग्र बने रहो । यह आलंबन लिया जा सकता है । हमारी साधना के अनेक आलंबन होते हैं । ब्रह्मचर्य के भी अनेक आलंबन हैं । छह आलम्बन बताये गए और ये आलंबन भी प्रारंभिक हैं । आगमों के व्याख्याकार कहते हैं कि अबहुश्रुत के लिए ये आलंबन हैं । बहुश्रुत के लिए ये आलंबन नहीं हैं । वह भिन्न आलंबनों का चुनाव करेगा । उसके लिए आलंबन होगा — स्वास्थ्य | उसके लिए आलंबन होगा — ध्यान । किन्तु सामान्य साधक के लिए ये छह आलंबन बनते हैं । ये प्रारंभिक आलम्बन हैं । सबसे पहला आलम्बन है भोजन का ।
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