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________________ २४६ एकला चलो रे एक कहानी है। कुछ लोग रामायण सुनने को आए। एक भाई बहुत नींद लेता था। दूसरे लोगों ने देखा, रोज आकर बैठता है, कुछ सुनता ही नहीं। बस, दो मिनट में नींद शुरू करता है और जब प्रवचन पूरा होता है, अंगड़ाई लेते हुए उठता है और चला जाता है। कथावाचक ने सोचा-यह क्या ? बड़ा तमाशा है। एक दिन प्रवचनकार उठा और उसके मुंह में मिसरी की एक डली डाल दी। उठाया, जागा तो मुंह बड़ा मीठा था। पूछा-प्रवचन सुना ? कहा-सुना। पूछा-कैसा लगा। बोला, आज तो बहुत मीठा लगा। आज तो इतना मीठा लगा कि अभी तक मुंह मीठा हो रहा है । कुछ दिनों बाद वह एक दिन फिर नींद ले रहा था। अब उसके मुंह में ऐसी वस्तु डाल दी, जो बहुत कड़वी थी, दुर्गन्ध भी थी। जगाया। उठा। पूछाप्रवचन पूरा हो गया, कैसा लगा ? उसने कहा-आज बहुत कड़वा लगा, पूछो मत, आज तो बहुत कड़वा प्रवचन हुआ कि अभी तक मुंह कड़वा हो रहा है। __ ऐसे लोग चाहे प्रवचन हो, चाहे ध्यान हो, चाहे और कुछ हो, चाहे अध्ययन करने बैठे, तत्काल नींद में चले जाएंगे। ऐसे लोगों के लिए, निर्विचार ध्यान या मन को एकाग्र करना या मन को निर्विकल्प करना, ये बातें काम की नहीं हैं। जो कापोत लेश्या के लोग हैं, उनका मन बहुत चंचल होता है, भटकता रहता है, सक्रिय होता है। वे प्रमादी नहीं होते। उनकी तुलना करनी चाहिए बंदर से। बंदर की तरह उनका मन दौड़ता रहता है । उनको भी कहा जाए कि बिलकुल स्थिर, एकाग्र होकर ध्यान करो तो ठीक वैसा ही होगा जैसे बंदर को कहा जाए, तुम स्थिर होकर बैठे रहो। कैसे सम्भव होगा? यह कहा गया कि बंदर कभी स्थिर होकर बैठे तो मानना चाहिए कि 'तत् कपेरपि चापलम्'---उसका स्थिर रहना भी चंचलता का एक लक्षण है। इन तीनों प्रकार के लोगों को एकाग्रता, निर्विकल्पता, निविचारता की साधना नहीं कराई जा सकती। यदि कराते चले जाएं, दस वर्ष तक भी कराते जाएंगे तो भी नींद हमेशा साथ रहेगी, चंचलता साथ रहेगी, पीछा नहीं छोड़ेगी। साधना का मार्ग उनके लिए दूसरा चुनना होगा। दूसरा विकल्प उनके सामने प्रस्तुत करना होगा, जिससे कि वे उस रास्ते पर चलें और चलते-चलते स्वभाव को बदल दें, दूसरे स्वभाव में चले जाएं । तेजोलेश्या की अधिकता वाले व्यक्ति में अचपलता शुरू होती है, वह अचपल होता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003058
Book TitleEkla Chalo Re
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherTulsi Adhyatma Nidam Prakashan
Publication Year1985
Total Pages320
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size14 MB
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