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आध्यात्मिक स्वास्थ्य
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नहीं हैं, और अधिक हो सकते हैं। छह नहीं, छह सौ हो सकते हैं । यह कहना अतिशयोक्तिपूर्ण नहीं होगा कि यदि छह करोड़ आदमी हैं तो आलंबन भी छह करोड़ हो सकते हैं । यह प्राणी जगत् का प्रश्न है । प्राणी यंत्र तो है नहीं कि एक ही तरह से सब बन जाएं। यह प्रश्न है चैतन्य जगत् का, प्राणी जगत् का । प्राणी जगत् के लिए कोई सार्वभौम नियम नहीं बनाया जा सकता । प्राणी जगत् के लिए कोई जागतिक कानून नहीं बनता । प्राणी की अपनी स्वतन्त्रता होती है, अपनी क्षमता होती है और क्षमता के आधार पर सारे नियम बनते हैं । साधना का चुनाव एक ही प्रकार से नहीं होता । विभिन्न क्षमताओं के आधार पर साधना के मार्ग भी अलग-अलग होते हैं । साधना कराने वाले व्यक्ति को पहले देखना होता हैं कि साधना में प्रवेश पाने वाले व्यक्ति की लेश्या कौन-सी है ?
तुम निर्विचार बैठो, शान्त
लेश्याएं छह हैं । प्रत्येक व्यक्ति में छह लेश्याएं होती हैं, किन्तु कुछ लेश्याएं प्रधान होती हैं । जो व्यक्ति कृष्णलेश्या प्रधान होता है, उसमें आर्त्त - भाव अधिक होता है । उससे कहा जाए – तुम बैठो, मन को एक अग्र पर टिकाओ । खूब गहरे में जाओ, अन्तर्ध्यान करो। वह भटक जाएगा, कर ही नहीं पाएगा । उसे यह मार्ग नहीं बतलाया जाना चाहिए। नील लेश्या वाला व्यक्ति बहुत प्रमत्त होता है । उसे कहा जाए होकर बैठा । वह सीधा नींद में चला जाएगा। नींद में जाने वाले प्रमादी लोग होते हैं । नील लेश्या की प्रधानता आती है तो आदमी नींद में च जाते हैं। प्रमादी की तुलना अजगर से होती है । अजगर बहुत प्रमादी होता है | पड़ा रहता है, पड़ा रहता है । आसपास में कुछ मिल जाए तो खा लेता है और पड़ा रहता है । बिलकुल चंचल नहीं होता, बहुत गतिशील नहीं होता, बहुत घूमता नहीं, पड़ा रहता है । प्रमत्त आदमी अजगर होते हैं । उनको कहो, कायोत्सर्ग करो, कितना अच्छा रास्ता है, दो मिनट में ही नींद में चले जाएंगे । बस, अच्छा कायोत्सर्ग बन जाएगा । नील लेश्या के लोग बहुत जल्दी नींद में चले जाते हैं । रंग-चिकित्सा का सिद्धान्त है कि जिस व्यक्ति को नींद न आए, उसे नीले रंग का पानी पिलाया जाए, नींद बहुत जल्दी आएगी सूर्य-चिकित्सा में, सूर्य - रश्मि-चिकित्सा में नीले रंग के पानी को उपयोग में नील लेश्या वाले लोगो के लिए ध्या फिर पूछा जाए कि ध्यान कैसा हुआ
लाया जाता है नींद दिलाने के लिए । सबसे अच्छा साधन होता है नींद का तो कहेंगे- आज तो ध्यान बहुत अच्छा हुआ ।
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