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एकला चलो रे
सकता । विपत्ति को सहा जाता है आत्मबल से । फिर प्रश्न पूछा-महाराज! रहस्य बतलाएं कि कैसे उत्पन्न होता है आत्मबल ? उसका रहस्य क्या है ? जानना चाहता हूं। संन्यासी बोला, 'अच्छे विचार से पैदा होता है आत्मबल ।' निरन्तर शुभ विचार किया जाए, पोजीटिव विचार किया जाए, विधायक विचार किया जाए, धनात्मक विचार किया जाए, अमंगल विचार कभी न किया जाए तो वह आत्मबल उत्पन्न होता है । तब व्यक्ति हर कठिनाई को झेल सकता है, उसका सामना कर सकता है। एक बहुत बड़ा सूत्र मिलता है मंगल विचार का । मन में कोई अमंगल भावना न आए, किसी के प्रति न आए। निरन्तर मंगल भावना, अपने प्रति, दूसरों के प्रति भी और सब दिशाओं के प्रति भी। बहुत शक्ति जाग जाती है । यह स्थिति पैदा होती है कुछ आलम्बनों के द्वारा । लक्ष्य के साथ फिर आलम्बन जुड़ते हैं। भगवान महावीर के सामने भी यह प्रश्न था कि कोई मुनि बना, ब्रह्मचारी बना और काम की मूर्छा सताने लगी । क्या करना चाहिए ? भगवान् महावीर ने उसके लिए कुछ सूत्र बतलाए । साधक में जब काम की मूर्छा जगे तो उसे कुछ आलम्बनों का उपयोग करना चाहिए। वे आलम्बन छह
१. रस का परित्याग गरिष्ठ भोजन का परिहार,
दुर्बल भोजन का आसेवन । २. ऊनोदरी -भूख से कम खाना । ३. अनशन -भोजन का सर्वथा परिहार । ----ये तीन आलम्बन भोजन से संबंधित हैं। ४. उर्ध्वस्थान -खड़े-खड़े ध्यान करने का अभ्यास करना । ५. ग्रामानुग्राम विहरण-~-एक गांव से दूसरे गांव में विचरण करना । ६. काम-वासना में जाते हुए मन का विषय बदल डालना, संकल्प को
हटा लेना। यहां छह आलम्बनों का प्रतिपादन किया गया है। आलम्बन इतने ही १. आयारो ५/७६-८५ : अवि णिब्बलासए । अवि ओमोयरियं कुज्जा।
अवि उड्ड ठाणं ठाइज्जा। अवि गामाणुगामं दूइज्जेज्जा । अवि आहारं वोच्छिद्देजा। अवि चए इत्थीसू मणं ।
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