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________________ २४४ एकला चलो रे कि कौन-सा समाचारपत्र ऐसा होगा जिसमें आत्महत्या की चर्चा न हो। आत्महत्याओं में प्रेम के कारण आत्महत्या करने वालों की चर्चा कम नहीं होती । बहुत बड़ी समस्या है। विवाह कर लेने वाले भी समस्याओं का अनुभव करते हैं। जहां दो व्यक्तियों का सम्बन्ध होता है, कोई गारण्टी नहीं कि परस्पर प्रेम सदा बना रहे। अगर ऐसा होता तो तनाव चलता ही नहीं, तनाव की नौबत ही नहीं आती, किन्तु तनाव होते हैं। यह इस बात की सूचना है कि विवाह या अब्रह्मचर्य या काम भी एक समस्या है। कितने झगड़े होते हैं परस्पर, कितने कलह होते हैं, कितनी हत्याएं होती हैं ? काम के साथ बहुत सारी समस्याएं जुड़ी हुई हैं। कहना यह चाहिए कि काम के कारण बहुत सारी समस्याओं का जन्म हुआ है । हिंसा की समस्या, चोरी की समस्या, असत्य की समस्या और उनकी उपजीवी समस्याएं, ये सारी समस्याएं काम के परिवार के रूप में उत्पन्न हैं । तो क्या अब्रह्मचर्य की कोई समस्या नहीं है ? अगर कोई समस्या नहीं होती तो फिर यह बाधा ही नहीं होती । यह भी बहुत बड़ी समस्या है और इसलिए समस्या है कि ब्रह्मचर्य की मांग शरीर की मांग भी है और मन की मांग भी है । दोनों की मांग है । इसे केवल मानसिक नहीं कह सकते, काल्पनिक नहीं कह सकते । शरीर और मन दोनों की मांग है और इसके पीछे श्रृंखला है संस्कार की। इसके साथ संस्कार जुड़ा हुआ है । ब्रह्मचर्य की अपनी समस्या है। कोई ब्रह्मचारी बने और शरीर व मन की मांग को पूरा न करे तो पागल भी हो सकता है, पागल हो जाता है । कुछ ऐसे लोग हैं जिन्होंने शादी नहीं की, गृहस्थी में बने हुए हैं। लगता ऐसा है कि जैसे आधे विक्षिप्त हों। आधे पागल बन गए। बड़ी समस्या है यह । तो फिर क्या करें ? कौन-सा रास्ता चुने ? अब्रह्मचर्य की अपनी समस्या, ब्रह्मचर्य की अपनी समस्या और हम लोग चाहते हैं कि समस्या-मुक्त मार्ग में जाएं। कौन-सा मार्ग चुनें ? न अब्रह्मचर्य को चुनें, न ब्रह्मचर्य को चुनें तो किसको चुनें ? अधर में रहें। आकाश भी नहीं, पाताल भी नहीं, त्रिशंकू की भांति बीच में ही लटकते रहें ? कहां जाएं ? बहुत बड़ी उलझन है। निश्चित मानकर चलें कि हमारे जीवन में कोई घटना, कोई भी बात ऐसी नहीं होती जिसके साथ समस्या जुड़ी हुई न हो । किन्तु आदमी समस्या का सामना करता है लक्ष्य के आधार पर । जो लक्ष्य चुनता है उसके आधार पर समस्याओं को सुलझाने की बात उसके सामने आती है । मूल प्रश्न प्रवृत्ति का नहीं है, समस्या का नहीं है । मूल प्रश्न है लक्ष्य का। जिन लोगों ने Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003058
Book TitleEkla Chalo Re
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherTulsi Adhyatma Nidam Prakashan
Publication Year1985
Total Pages320
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size14 MB
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