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हम स्वास लमा सीखें
२३६ बड़ी बात बनाने की बात भूठ होती है । मुझे लगता है कि धार्मिक जगत् ने श्वास लेने की छोटी बात को भुलाया, उपेक्षा की, इससे समूचा धर्म एक प्रकार की दुर्व्यवस्था में चला गया। भाज कितमा बड़ा प्रश्न ? एकाग्रता नहीं होती, स्वभाव नहीं बदलता, आदतें नहीं बदलती । गुस्सा जितना करता है, उतमा ही करता जा रहा है । कोई परिवर्तन नहीं आता । अहंकार उतना की उतना है, रोज सुनते हैं, पढ़ते हैं, पर कोई परिवर्तन नहीं होता। जब तक मन को चंचल बनाने वाली दो बातों पर भापका ध्यान केन्द्रित नहीं होता, जब तक आदतों में विकार भरने वाली दो बातों की ओर ध्यान केन्द्रित नहीं होता तब तक यह परिवर्तन आना समस्याओं का नहीं है। एक तो है पहले किए हुए कर्म के विपाक को बदलने की प्रक्रिया और दूसरा श्वास लेने की कला, जो कि मन की चंचल बनाने वाली वायु को जीतने की प्रक्रिया है। जिस व्यक्ति ने वायु को जीत लिया उसने सचमुच अपनी समस्याओं का समाधान पा लिया, धर्म की सुन्दरतम आराधना उस व्यक्ति ने कर ली। जितना महत्त्व पुराने संचित कर्मों की क्षीण करने का है, उतना ही महत्व वायु को वश में करने का है।
अब प्रश्न होगा कि वश में करने की प्रक्रिया क्या है ? प्रेक्षाध्यान का पहला सूत्र है-दीर्घश्वास प्रेक्षा । श्वास कैसे लें? दीर्घ श्वास लें, श्वास को लंबा करना सीखें । एक सामान्य आदमी एक मिनट में १५, १६, १७ श्वास लेता है। यह तो हमारा सामान्य नाप है । जब आदमी आवेग में जाता है तो श्वास की संख्या बढ़ जाती है । क्रोध के आवेग में वह संख्या २५-३० हो जाती है। आदमी दौड़ता है तो श्वास की संख्या बढ़ जाती है । चढ़ाई करता है तो श्वास की संख्या बढ़ जाती है। अब्रह्मचर्य के सेवन के साथ श्वास की संख्या ६०,७० तक चली जाती है । श्वास की संख्या जितनी बढ़ती है, उतनी शक्तियां ज्यादा क्षीण होती है । श्वास की संख्या बढ़ जाती है, कार्बन कम निकलता है और ऑक्सीजन की मात्रा कम मिलती है । कोयले इकठे ज्यादा हो जाते हैं और प्राणशक्ति कोशिकाओं को पूरी मिलती नहीं । जीवन एक प्रकार से लड़खड़ाने लग जाता है । जब दीर्घश्वास का प्रयोग करते हैं तो स्थिति बदल जाती है । जहां एक मिनट में १५-१६ श्वास की बात होती है, वहां दीर्घश्वास का प्रयोग करके श्वास की संख्या बारह हो जाती है। दस होती है, आठ होती है, सात होती है, पांच तक चली जाती है। चार तक तो बहुत लोग चले जाते हैं । और अच्छा अभ्यास हो जाए तो एक मिनट में
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