________________
२३६
एकला चलो रें
वेग को रोक नहीं पा
हमने कर्मों का ऐसा
किन्तु पहले इतना तेज घुमाया कि अभी तक वह अपने रहा है और तेजी के साथ घूमता चला जा रहा है । शक्तिशाली संचय और संग्रह किया है, हमने ऐसी क्रियाएं की हैं कि हमें ऐसी प्रतिक्रियाएं फलस्वरूप भोगनी पड़ रही क्रिया आज भी चल रही है और यह मन रहा है ।
।
क्रिया बंद हो गयी किन्तु प्रतिका चाक बिलकुल घूमता चला जा
1.
एक कारण है कर्म । दूसरा कारण है वायु । वायु भी बहुत चंचलता बढ़ाता है । मन की चंचलता बढ़ाने में वायु का भी बड़ा योग होता है । जो लोग वायु की प्रकृति वाले होते हैं उनका मन बड़ा चंचल होता है । आयुर्वेद के अनुसार हमारे शरीर में तीन मूल तत्त्व होते हैं-वात, पित्त और कफ । कफ की प्रकृति वाला आदमी लोभी ज्यादा होता है, पित्त की प्रकृति वाला आदमी क्रोधी ज्यादा होता है और वायु की प्रकृति वाला आदमी चंचल ज्यादा होता है, बातूनी ज्यादा होता है। वायु भी चंचलता को बढ़ाती है । आयुर्वेद का प्रसिद्ध श्लोक है -
Jain Education International
'पित्तं पंगु कफः पंगु, वायुता यत्र नीयन्ते तत्र पित्त पंगु है, कफ पंगु है, किन्तु वायु गतिमान है । वह जिधर ले जाता है, वे उधर चले जाते हैं । यह सारी चंचलता, वायु की चंचलता है । अगर तेज तूफान आता है तो बैलगाड़ियां तक उछलने लग जाती हैं, उड़ने लग जाती हैं। आसाम में कुछ वर्षों पूर्व चक्रवात आया था, बैलगाड़ियां उड़ीं, उड़कर पेड़ों पर अटक गयीं । पता नहीं चलता आदमी का भी, मकान का भी । हवा की शक्ति का पता नहीं चलता । हमारे संसार की यह चंचलता हवा की चंचलता है । वायु मन को चंचल बनाती है । यह श्वास और क्या है, पवन है । यह श्वास क्या है, वायु है । यह स्वयं चंचल है और मन को चंचल बनाता है । मन की चंचलता का एक बड़ा कारण है-वायु । हम श्वास लेना सीखें । इस प्रश्न के पीछे केवल जीवन का प्रश्न नहीं है । केवल शारीरिक स्वास्थ्य का प्रश्न नहीं है किन्तु मानसिक स्वास्थ्य का बहुत बड़ा प्रश्न इसके साथ जुड़ा हुआ है । जिस व्यक्ति ने श्वास को ठीक से लेना नहीं सीखा, उसने अपनी मन की अवस्थाओं को सम्यक् करना भी नहीं सीखा । उसका मानसिक स्वास्थ्य अच्छा नहीं हो सकता । आपको पता है कि व्यक्ति को गुस्सा क्यों आता है ? और कब आता है ? हर बात को समझने के लिए क्यों और
पंगवः सर्वधातवः । गच्छन्ति ते तथा । '
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org