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.. एकला चलो रे.
ताड़ियां जैसे लुप्त हो गईं, समाप्त हो गई। कितना वेग है, कितना चंचल है ! मैं कहूं कि पंखा कितना चंचल है। झूठ तो नहीं होगा किन्तु सच भी नहीं होगा। अगर कहूं कि पंखा चंचल है तो बिलकुल सच नहीं होगा। यह पंखा तब तक चंचल है जब तक बिजली का इसमें प्रवाह है। जैसे ही प्रवाह रुकेगा, पंखा लड़खड़ाता-सा चलने लग जाएगा और एक-दो मिनट में वह शांत हो जाएगा। अब मैं आपसे पूछना चाहता हूं, क्या पंखा चंचल है ? आप कहेंगे कहां चंचल है ? स्थिर है । पंखा चंचल नहीं है। विद्युत् का करंट है, प्रवाह है । स्विच ऑन किया, पंखा चलने लगा, पंखा चंचल हो गया । बिजली चली गयी या स्विच ऑफ किया, पंखा बिलकूल शांत हो गया। तो अब क्या कहें पंखे को, चंचल कहें या स्थिर कहें ? पंखा चंचल भी नहीं है, पंखा स्थिर भी नहीं है । अपने आप में कुछ भी नहीं है। कोरा पंखा है । किन्तु पीछे कोई धक्का लगता है, पंखा तेज चलने लग जाता है और धक्का बंद हो जाता है, पंखा चलाना बन्द हो जाता है।
मेरे हाथ में कपड़ा है। हिल रहा है, चंचल है। किसी से पूछु कि क्या है ? वह कहेगा-चंचल है। रख दिया नीचे । अब क्या है ? चंचलता समाप्त हो गई । क्या मैं मान लूं कि कपड़ा चंचल है ? क्या मैं मान लूं कि पंखा चंचल है ? पंखे को चंचल नहीं कहा जा सकता, कपड़े को चंचल नहीं कहा जा सकता । चंचल बनाने वाला है वह कोई दूसरा ही है। बहुत बार ऐसा होता है कि कुछ लोग आरोप कर लेते हैं। काम करना किसी को होता है, कराते हैं किसी से । कार्य किसी का होता है, नाम किसी का हो जाता है। ____ आदमी न जाने कहां, कैसे, क्या आरोपण करता है ! अपनी बात को दूसरों पर कैसे थोपता है । यह भी एक थोपी हुई बात है कि मन चंचल है । ठीक वैसे ही लगता है कि चंचल कोई दूसरा है, उपवास किसी दूसरे को करना है और बेचारी मन की भैंस को उपवास करवा दिया, उसको हमने चंचल बना दिया । बहुत अजीब प्रश्न है ।
डॉक्टरों के साथ मेरी जो बात हो रही था वह समाप्त हो गई। वे समझदार लोग थे, डॉक्टर थे, बात को समझ गए और उनको ऐसा लगा कि जैसे कोई कांटा निकल गया हो।
मन चंचल क्यों होता है ? हम कहते हैं-शास्त्र कहते हैं, न जाने कितने ग्रंथों में, कितने शास्त्रों में आपको लिखा मिलेगा कि मन चंचल है। गीता में लिखा मिलेगा। उत्तराध्ययन सूत्र में मिलेगा कि यह मन का घोड़ा इतना तेज
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