SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 244
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ हम श्वास लेना सीखें २३३ है, यह आवश्यक है । वही उत्तर यदि मिलता कि मैं प्राइम-मिनिस्टर हाउस से बोल रहा हूं तो सारी स्थिति बदल जाती और जब उत्तर मिला कि पागलखाने से बोल रहा हूं तो वहां से पंडित जवाहरलाल नेहरू बोले या कोई भी बोले, कोई फर्क नहीं पड़ता । पागल पंडित जवाहरलाल नेहरू भी बन सकता है और कुछ भी बन सकता है । अवतार भी बन सकता है। कौन, कहां और कैसे, जब तक इन प्रश्नों पर मीमांसा नहीं करते, जब तक हम इन प्रश्नों पर विमर्श नहीं करते और ध्यान नहीं देते तब तक समस्याओं को नहीं सुलझा पाते। श्वास कैसे लें? बहुत महत्त्व का प्रश्न है, क्योंकि श्वास हमारे जीवन का प्रश्न है । जीवन के साथ जुड़ा हुआ है यह । जीवन के साथ इतना जुड़ा हुआ है कि उसको कभी अलग नहीं किया जा सकता। न जागने में अलग किया जा सकता है और न सोने में अलग किया जा सकता है। आदमी नींद में भी श्वास लेता है और जागता है तब भी श्वास लेता है। श्वास निरन्तर सहचर, हमेशा साथ चलने वाला, साथ रहने वाला है। उसे कैसे अलग किया जा सकता है ? हम कहते हैं कि छाया साथ में रहने वाली है । छाया तो तब होती है जब धूप होती है। धूप नहीं होती तो छाया नही होती। छाया साथ में तभी रहती है जब धूप होती है। किन्तु श्वास तो निरन्तर साथ में रहता है चाहे धूप हो चाहे न हो। हर क्षण साथ में रहने वाला जो श्वास है, उसके प्रति हम उपेक्षा नहीं बरत सकते । श्वास का संबंध केवल हमारे भौतिक शरीर से ही नहीं है, श्वास का संबंध हमारे मानसिक शरीर से भी है। मन से भी बड़ा गहरा संबंध है। जिस व्यक्ति ने श्वास को नहीं समझा, उसने मन को भी नहीं समझा। अभी दो दिन पहले डॉक्टर मेरे पास बैठे थे। उन्होंने पूछा-आपने 'पुस्तक लिखी है और उसका टाइटल दिया है 'किसने कहा मन चंचल है।' यह कैसे ? मन तो चंचल ही होता है। यह नयी बात क्यों ? यह नया प्रश्न क्यों ? क्या मन चंचल नहीं होता? यदि नहीं होता तो हमारे हजारोंहजारों आचार्यों ने कहा कि मन चंचल होता है। क्या आप उन सबको झुठलाना चाहते हैं ? मैंने कहा-'यह कोई झुठलाने का प्रयत्न नहीं है। आप डॉक्टर हैं और विज्ञान के बारे में जानते हैं। यह बिजली जल रही है और यह पंखा चल रहा है । पंखे की ताड़ियां इतनी घूम रही हैं, लगता नहीं कि ताड़िया घूम रही हैं। लगता है कि एक चक्राकार कोई वस्तु घूम रही है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003058
Book TitleEkla Chalo Re
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherTulsi Adhyatma Nidam Prakashan
Publication Year1985
Total Pages320
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy