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पुरुषार्थ की नियति और नियति का पुरुषार्थ
२२७ मापने पढ़ा होगा कि पशिचमी जर्मनी में एक कानून बनाया न्यायालयों ने कि कोई भी क्रिमिनल केस आए, उसे तत्काल स्वीकार नहीं करना । पांचचार घंटे तक उस व्यक्ति को बिठाया जाए और फिर बाद में उसको स्वीकार किया जाए । परिणाम यह आया कि १०० में से ७० तो ऐसे ही लौट जाते । और वास्तव में २० से ३० जो यथार्थ होते, वे ही बच पाते। आदमी आवेश में बहुत काम करता है और जब आवेश को शांत होने का मौका मिल जाता है तो फिर ये क्षण टल जाते हैं। _उपाय का सम्यक् प्रयोग करें तो हमारी बहुत सारी समस्याएं टल जाती हैं । यह भी एक उपाय है कि गुस्सा उतरे और तत्काल श्वास को रोक दें। एक मिनट में गुस्सा शांत हो जाएगा। श्वास के बिना गुस्सा आएगा कैसे ? हमारे शरीर में होने वाली सारी हलचलें, सारो प्रवृत्तियां श्वास के साथ होती हैं और जब श्वास शांत, फिर आवेग जीवन में उतर नहीं सकता। क्रोध-शमन के एक नहीं, दसों उपाय हैं । केवल क्रोध के नहीं, वासना के, भय के, शमन के दसों उपाय हैं। दुनिया में जितने अपाय हैं उतने ही उपाय भी हैं । हमारा दूसरा सूत्र है सफलता का कि हम उपायों को जानें, नियमों को जानें । नियति का अर्थ होता है नियम। ध्यान के अपने अर्थ होते हैं । ध्यान के अपने नियम हैं। हम अध्यात्म के नियमों को नहीं जानते इसलिए उसका उपयोग नहीं कर पा रहे हैं । धर्म की तेजस्विता, अध्यात्म की शक्ति जो कम हुई है उसका मैं एक कारण मानता हूं कि अध्यात्म और धर्म की जो नियति थी, जो सार्वभौम नियम थे उन नियमों से आज हम अपरिचित हो गए। ध्यान के प्रयोग का एक बहुत बड़ा अर्थ होता है उन नियमों की जानकारी, उन रहस्यों की जानकारी।
तीसरी बात, हमारा सम्यक् पुरुषार्थ हो । दृष्टि भी सम्यक् है। उपाय का ज्ञान भी हमें हो गया है। किन्तु हम पुरुषार्थ करनो नहीं जानते । यह मारकोस जैसा आलसीपन । एक पश्चिमी व्यक्ति हुआ है—मारकोस । बहुत आलसी था कि काम करना नहीं चाहता । एक दिन सो रहा था। सोते-सोते सपना आ गया कि आज तो मैं बहुत काम कर रहा हूं। उसने सोचा बड़ा अन्याय हो गया, भला काम का और मेरा संबंध ही क्या ? उस दिन से उसने सोना ही बन्द कर दिया, बैठे-बैठे नींद लेने लगा। उसने सोचा, कहीं दूसरी बार सपना न आ जाए कि मैं काम कर रहा हूं। जहां इतनी पुरुषार्थहीनता होती है और इतना आलस्य होता है तो दृष्टि साफ हो जाने पर भी कार्य
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