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एकला चलो रे
की तरह दवा पीकर निगल लो। दस मिनट तक उसे मुंह में रखो जिससे 'कि पूरी लार उसके साथ में मिल जाए। जो भी खाया जाता है, पीया जाता है उसमें लार महीं मिलती तो ठीक से पाचन नहीं होता। इस दवा के साथ -लार नहीं मिलेगी तो यह पचेगी नहीं। यह दबा तभी काम करेगी जब दस मिनट तक मुंह में इसे घुमाती रहो। जब पूरी लार मिल जाएगी तो यह ऐसी कीमती दवा है कि पहले ही दिन यह अपना प्रभाव डाल देगी।'
वह युवती दवा लेकर आश्वस्त होकर घर चली गई।
अब झगड़ा तो रोज का क्रम था। ऐसा क्रम बन गया कि सास को बहू से और बहू को सास से लड़े बिना शांति नहीं मिलती। झगड़ा शुरू हुआ छोटी-सी बात पर। अब सास बड़ी गुस्से में आयी। वह भला पीछे रहने वाली कब थी ! पर आज तो दवा ले आयी थी। सोचा, अभी दवा लूं । भौतर गयी और दो बूंट मुंह में डालकर आ गई । मुंह तो भरा था, बोले तो कैसे बोले ? बोलने वाली तो थी पर दस मिनट तक पालन करना था । दस मिनट तक नहीं बोली। तो सास का गुस्सा भी पांच मिनट में ही शांत हो गया । गुस्सा तब बढ़ता है जब सामने ईंधन मिले। ईंधन नहीं मिले तो आग अपने आप बुझ जाएगी । ईंधन नहीं मिला तो सास भी बोलती-बोलती शांत हो गई । उत्तेजना नहीं मिली, बिना उत्तेजना के कुछ होता नहीं। ये जितने स्थायी भाव, सात्विक और संचारी भाव होते हैं वे सारे उत्तेजना के सहारे, "उद्दीपन के सहारे चलते हैं। यदि उद्दीपन नहीं होता तो वे अपने आप शांत हो जाते हैं। उद्दीपन मिला नहीं, सास शांत हो गई। बहू ने सोचा-दवा तो बहुत अच्छी दी । पहले ही दिन शांति हो गई। दो-चार-पांच दिन प्रयोग किया । झगड़ा बन्द, गुस्सा बन्द, लड़ाइयां बन्द–सब कुछ समाप्त हो गया। 'चिकित्सक के पास जाकर बोली, 'पिताजी, आपने दवा तो बहुत बढ़िया दी। ऐसी दवा कि आपने कहा था कि पांच-दस दिन में शांति हो जाएगी, लेकिन दवा ने तो पहले ही दिन अपना चमत्कार दिखला दिया। सब कुछ ठीक हो गया है, अब कुछ भी समस्या नहीं है।' 'बेटी, पथ्य का पालन ठीक किया ?' "हां, बिलकुल आपने कहा—वैसा ही किया ।'
अब भला दस मिनट तक जो गुस्सा नहीं करे, वह गुस्सा कर ही नहीं सकता । गुस्सा तो पहले ही क्षण में आता है। अगर दो क्षण भी गुस्सा न करे तो वह कर ही नहीं सकता।
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