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पुरुषार्थ की नियति और नियति का पुरुषार्थ
२२५ लिया वे वापस किसलिए आते सामने आना नहीं चाहते थे क्योंकि वापस तो देना नहीं था--मुफ्त में मिला है । और धनियों से मांगना शुरू किया तो उन लोगों ने सोचा कि अब तो जाना ठीक नहीं है। जाते ही पहले यह होगा कि 'लाओ-लाओ' । भीड़ कम हो गई।
उपाय ठीक मिलता है तो दोनों बातें हो जाती हैं। हमारे हाथ उपाय लगना चाहिए। आज ही एक भाई ने पूछा कि क्रोध आए तो क्या करना चाहिए ? उपाय की बात है। क्रोध एक बहुत बड़ी समस्या है । जटिल समस्या है और पारिवारिक शान्ति को अस्त-व्यस्त करने में एक सबसे बड़ी समस्या है । हर बात पर आवेश आ जाता है। इतना झगड़ा परिवार में हो जाता है कि एक-दूसरे की बात कोई सुनना नहीं चाहता। हित की बात भी कोई सुनना नहीं चाहता है तो अहित की बात को कोई सुने ही क्यों ! एक बहुत जटिल समस्या है, पर क्या यह निरुपाय है ? निरुपाय कुछ भी नहीं है। उपाय है । उपाय के द्वारा हम इस समस्या से छुट्टी पा सकते हैं। सबसे सीधा उपाय है कि जब क्रोध आए तत्काल वहां से उठकर एकान्त में चले जाएं। क्रोध की स्थिति समाप्त हो जाएगी। क्रोध हमेशा आमने-सामने आता है। एकान्त में चले गए तो गुस्सा शांत हो जायेगा। क्रोध आया और एक क्षण के लिए नाक को बन्द कर लें, श्वास को रोक लें, क्रोध का आवेग कम हो जाएगा।
पुराने जमाने की घटना है । एक युवती को बहुत गुस्सा आता था । बहुत तेज स्वभाव । सास कोई बात कहती, उससे पहले ही वह उछल पड़ती। इतना तेज गुस्सा ! घर में बड़ा कलह रहने लगा। सब परेशान हो गए। सोचा क्या करूं? पास में एक पड़ोसी था बहुत समझदार, चिकित्सक और बड़ा अनुभवी । वह युवती उसके पास जाकर बोली, "पिताजी ! बड़ी समस्या है। घर में बहत कलह होता है। दिनभर लड़ाइयां चलती हैं। मैं परेशान, मेरी सास परेशान, सारा वातावरण ही अशांत हो गया है। मेरी चिकित्सा करें, कोई ऐसी दवा दें जिससे मेरा क्रोध शांत हो जाए। यह झगड़ा समाप्त हो जाए।' वह बड़ा अनुभवी था। उसने कहा-'बेटी ! एक दवा देता हूं पर उसका पथ्य बहुत कड़ा है। ध्यान रखना पड़ेगा।' वह बोली, 'जो कल आप कहेंगे, वही करूंगी।' भीतर गया, एक बोतल लाया और बोला, 'यह लो दवा । जिस समय गुस्सा आए उस समय यह दवा ले लो। पर पथ्य कडा है। दस मिनट तक इस दवा को मुंह में रखना पड़ेगा। ऐसा नहीं कि पानी
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