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एकला चलो रे
किन्तु उनसे जो स्राव होते हैं, जो रसायन बनते हैं, इतने शक्तिशाली रसायन होते हैं कि पिनीयल का एक छोटा-सा, थोड़ा-सा, एक सूई की नोक पर टिके उतना-सा रसायन, उतना-सा हारमोन सारे शरीर में हलचल पैदा कर देता है । तालपुट उग्र जहर होता है । उस जहर की, एक सूई की नोक पर टिके, उतनी-सी मात्रा एक हाथी के शरीर में पहुंच जाए तो हाथी चलता-चलता लुढ़क जाता है । आदमी की तो बात छोड़ दें। इतना भारी-भरकम जानवर लुढ़क जाता है। द्रव्य की शक्ति बहुत होती है। हमारे भीतरी द्रव्यों की शक्ति भी कम नहीं है। हमारे शरीर में रसायन भरे पड़े हैं। हमारा मस्तिष्क अनेक रसायनों को पैदा करता है। हमारी ग्रंथियां अनेक रसायनों को पैदा करती हैं। हम नियम को जान लें, नियति को जान लें । पुरुषार्थ के साथ नियति को जानना बहुत जरूरी है। पुरुषार्थ सफल होता है, किन्तु वह पुरुषार्थ कभी भी सफल नहीं होता जिसके साथ नियति जुड़ी हुई नहीं है । नियति का भी अपना काम होता है किन्तु वह नियति अकिंचित्कर बन जाती है, जिसके साथ पुरुषार्थ जुड़ा हुआ नहीं होता। हम नियति के पुरुषार्थ को जानें और पुरुषार्थ की नियति को जानें । यदि दोनों बातों को ठीक प्रकार से जान लें तो हमारा रास्ता बहुत साफ और सरल बन जाता है।
उपाय सम्यक् होना चाहिए। उपाय का बड़ा महत्त्व होता है। हर जगह जहां समस्या आती है, आदमी उपाय खोजता है। समाधान तब तक नहीं होता जब तक उपाय नहीं मिल जाए। उपाय स्वयं भी खोजा जा सकता है और उपाय खोजने के लिए गुरु की शरण भी ली जा सकती है । ___ कोई संन्यासी था। भीड़ बहुत होतो। सभी संन्यासी अपरिग्रही नहीं होते । कुछ संन्यासी बहुत परिग्रह भी रखते हैं। यह अपनी-अपनी परम्परा है । बड़ा आश्रम था । बहुत धन और बहुत लोगों की भीड़ । वह परेशान हो गया । गुरु के पास जाकर बोला, 'गुरुदेव ! और तो सब ठीक है पर एक बड़ी समस्या है। भीड़ बहुत हो जाती है, इतने लोग आते हैं कि मैं अपनी साधना पूरी तरह नहीं कर पाता, समय नहीं मिलता। रात-दिन चक्र-सा चलता है।' गुरु ने कहा, 'तुम एक काम करो, गरीब लोग आएं तो उनको कर्ज देना शुरू कर दो और जो धनवान लोग आएं तो उनसे मांगना शुरू कर दो।' उपाय हाथ में लग गया। उसने प्रयोग करना शुरू कर दिया-जो निर्धन आते, उन्हें कर्ज देना शुरू किया और धनी आते उनसे धन मांगना शुरू किया । पांच-दस दिनों में भीड़ बिलकुल छंट गई । क्योंकि जिन्होंने कर्ज
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