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एकला चलो रे
ने भी पकड़ा। किन्तु पकड़ने में बहुत अन्तर हो गया।
- ध्यान करने वाले व्यक्ति में शक्ति जागती है, ऊर्जा का जागरण होता है। किन्तु सम्यक नियोजन करने वाला उसका उपयोग कर लेता है और जो सम्यक् नियोजन करना नहीं जानता वह उसका दुरुपयोग भी कर लेता है । आप यह न मानें कि ध्यान से केवल लाभ ही होता है। ध्यान से लाभ भी उठाया जा सकता है और ध्यान से हानियां भी उठाई जा सकती हैं । दृष्टि सम्यक् हो जाए तो बहुत लाभ उठाया जा सकता है और दृष्टि साफ न हो, दृष्टि के दोष बने के बने रहें तो बहुत हानियां उठाई जा सकती हैं । दूसरी बात, सम्यक् उपाय होना चाहिए। आज सबसे बड़ी समस्या है उपाय की खोज । उपाय नहीं मिलते। हमारे सामने जितने उपाय हैं, जितनी अविद्या है, जितने अन्तराय हैं, उन्हें शान्त करने के लिए उतने उपाय मिल जाएं तो बहुत बड़ी बात होती है । मुझे आश्चर्य होता है कि उपाय किस प्रकार काम कर जाता है। ___ मैं इस शिविर की घटना ही आपको बताऊं। बिहार से एक अवकाशप्राप्त प्रिंसिपल यहां आए, कृष्णनंदन शाह, जो वहां विश्वविद्यालय की सीनेट के सदस्य भी हैं, बहुत प्रबुद्ध आदमी हैं। काफी ध्यान कर चुके हैं । लाहिड़ी योगी हुए हैं अच्छे, उनकी पद्धति के अनुसार वे ध्यान कर चुके हैं और उनके गुरु ने कहा, 'अब तुम कुण्डलिनी जागरण का ध्यान मत करो, तुम्हारा शरीर साथ नहीं दे रहा है।' यहां पहुंचे। कल बैठे थे मेरे पास । बात चल पड़ी। उन्होंने कहा, 'यह शरीर-प्रेक्षा का प्रयोग मुझे बहुत अच्छा लगा। यह बहुत सहज-सरल है और मैं कर सकता हूं।' मैंने कहा कि ठीक है। फिर उन्होंने कहा कि मेरी एक बीमारी है-हाथीपांव । (पैर बिलकुल सूजा हुआ था) इसके लिए क्या करूं? मैंने कहा कि आप शरीर-प्रेक्षा का प्रयोग करें और साथ-साथ सुझाव का भी प्रयोग करें। 'आटो सजेशन-स्वयं सूचना और स्वयं-निर्देशन का प्रयोग भी आप करें। बात पूरी हो गई। अब जो व्यक्ति प्रबुद्ध होता है वह बात को पकड़ता है और सम्यक् उपाय हाथ लग जाता है। उन्होंने रात को लगभग एक घंटा इस स्वत: सूचना का प्रयोग किया। अभी मेरे पास एक शिविरार्थी भाई आया जो उनसे देवघर में बहत संपर्क में है, आकर बोला, 'प्रिंसिपल साहब के जो इतनी सूजन थी वह आधी हो गई।' मैंने विश्वास नहीं किया । यह कैसे हो सकता है ? - थोड़ी देर बाद स्वयं प्रिंसिपल साहब आ गये और मैंने कहा, 'क्या किया
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