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________________ पुरुषार्थ की नियति और नियति का पुरुषार्थ आदमी कोई भी प्रयत्न करता है, उसका परिणाम चाहता है, सफलता चाहता है । जिस प्रयत्न का कोई परिणाम न आए, जिस पुरुषार्थ का कोई फल न हो, उसके प्रति हमारे मन में बहुत आकांक्षा और जिज्ञासा नहीं जागती । आज प्रातःकाल जयपुर के न्यायाधीश कोठारीजी ने कहा कि दो दिन ध्यान किया और सारे शरीर में हलचल-सी हो गई, सक्रियता बढ़ गई । मैंने कहा, 'कुछ करें और पता ही न चले तो फिर क्या है, किया या नहीं किया ? पता तो होना चाहिए कि हम कुछ कर रहे हैं। उसका अनुभव होना चाहिए । एक फल होना चाहिए। आदमी सफलता चाहता है। जो भी प्रवृत्ति प्रारंभ करता है, उसमें सफल होना चाहता है । सफलता के लिए तीन शर्ते हैं-सम्यक् दृष्टि, सम्यक् उपाय और सम्यक् प्रयत्न जब दृष्टि सम्यक नहीं होती तो सफलता नहीं मिलती। उपाय सम्यक नहीं होता तो सफलता नहीं मिलती और पुरुषार्थ सम्यक् नहीं होता तो सफलता नहीं मिलती। ये तीनों बातें अनिवार्य हैं और तीनों में से एक को भी नहीं छोड़ा जा सकता। तीनों परस्पर संबद्ध हैं। दृष्टि ठीक नहीं होती, हमारा ज्ञान सम्यक् नहीं होता तो पुरुषार्थ की सफलता नहीं हो सकती। हम परिणाम की भावना नहीं रख सकते । सबसे महत्त्व की बात है-दृष्टि का सम्यक् होना। इसीलिए प्रेक्षाध्यान के प्रयोग में हम इस बात पर सबसे अधिक बल देते हैं कि सबसे पहले पद्धति का जितना ठीक सम्यक् ज्ञान होगा, मार्ग का जितना सम्यक् ज्ञान होगा, उतना ही आगे विकास संभव होगा । बहुत बार ऐसा होता है कि बताया कुछ जाता है और पकड़ कुछ लिया जाता है। इससे भ्रांति पैदा हो जाती है । एक महिला ने प्रवचन सुना । प्रवचन में बात हो रही थी कि ईश्वर सर्वव्यापी है, भगवान सर्वव्यापी है। उसने इस बात को पकड़ लिया, पर उस बात को ठीक समझ नहीं पायी। घर में गई और कपड़ों सहित स्नान करने लगी। रोज का बन गया क्रम । घरवालों ने कहा, 'यह क्या बात है ? कपड़ों सहित क्यों स्नान करती हो ?' वह बोली, 'तुम्हें पता नहीं है । मैंने सुना Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003058
Book TitleEkla Chalo Re
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherTulsi Adhyatma Nidam Prakashan
Publication Year1985
Total Pages320
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size14 MB
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