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________________ एकला चलो रे रहीं हैं । कोई भी घटक पूर्ण स्वस्थ नहीं है । इसलिए लोग चाहते हैं कि जीवन का क्रम बदले, पद्धति बदले । यह तभी संभव है जब आत्मानुशासन और आरोपित अनुशासन में संतुलन स्थापित हो । कोरे बाहरी नियंत्रण से चेतना यांत्रिक बन जाती है। उससे स्वतंत्र चेतना का विकास नहीं हो सकता। ___ ध्यान का पूरा प्रयोग आत्मानुशासन को जगाने का प्रयोग है । यह आरोपित अनुशासन के लिए नहीं है । ध्यान का अभ्यास करने वाले साधक इसका संकल्प करें कि वे आरोपित अनुशासन को छोड़ देंगे। वे स्वतंत्र चेतना से काम करें। जहां प्रतिबद्ध अनुशासन होता है, वहां अनेक घटनाएं घटित होती हैं, जो अवांछित होती हैं। जहां आत्मानुशासन की चेतना जागती है, स्वतंत्र चेतना की अनुभूति होती है, तब जिस प्रकार के व्यक्तित्व का निर्माण होता है वह अनोखा और विशिष्ट होता है। जागरूकता का अभ्यास आत्मानुशासन को जगाने का प्रयत्न है । इस प्रयत्न में प्रयोग कराने वाला और प्रयोग करने वाला-दो भूमिका पर नहीं होते। वे दोनों एक ही भूमिका पर होते हैं। अध्यात्म के क्षेत्र में भूमिकाएं समाप्त हो जाती हैं । वहां प्रयोग करानेवाला भी वैसा ही है और प्रयोग करने वाला भी वैसा ही है । वहां न कोई आदेश देने वाला होता है और न कोई आदेश मानने वाला होता है। वहां आदेश की भाषा समाप्त हो जाती है, केवल चेतना का सम्बन्ध जुड़ता है, केवल मैत्री का सम्बन्ध जुड़ता है, केवल आत्मा से आत्मा का सम्बन्ध जुड़ता है। इस भूमिका में स्वतंत्र चेतना का अनुभव होता है । बतलाने वाला भी चेतन होता है और करने वाला भी चेतन होता है। दोनों चेतन होते हैं। जहां चेतना की भूमिका समाप्त होती है वहां भेद समाप्त हो जाते हैं । अध्यात्म की ही भूमिका ऐसी है, जहां केवल चेतना बसती है, आदमी भी समाप्त हो जाता है, समुदाय और मान्यताएं समाप्त हो जाती हैं । धारणाएं भी नहीं बचती। केवल चेतना बचती है। हम चेतनावान् हैं । हमारे में ज्ञान की शक्ति है, बस यह बचता है। यही व्यक्ति की स्वतंत्रता का बोधक है । पदार्थ में चेतना नहीं होती, तो वहां स्वतंत्रता भी नहीं होती। मनुष्य में चेतना होती है तो उसमें स्वतन्त्रता भी है । एक चींटी रेल की पटरी पर चल सकती है और इच्छा के अनुसार नीचे भी उतर सकती है। वह स्वतंत्र है । एक गाड़ी पटरी पर चलती है तो जब चाहे वह नीचे नहीं उतर सकती। वह परतंत्र है। उसमें कोरा यंत्र है। उसमें चेतना नहीं है। जिसमें चेतना होती है उसी में इच्छा होती है। हम इच्छाशक्ति का प्रयोग करें। जब स्वतंत्र चेतना का विकास होगा, तब जागरूकता बढ़ेगी। इसके साथ ही साथ जीवन की सफलता भी घटित होगी। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003058
Book TitleEkla Chalo Re
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherTulsi Adhyatma Nidam Prakashan
Publication Year1985
Total Pages320
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size14 MB
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