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जागरूकता
शिक्षा के विकास में आलस्य बहुत बड़ी बाधा है।
चाहे भौगोलिक वातावरण एक कारण हो, चाहे कोई दूसरा कारण हो, भारतीय व्यक्ति में आलस्य की मात्रा अधिक है। जयप्रकाश नारायण एक घटना सुनाते थे___ एक बार वे जापानी मित्रों के साथ यात्रा कर रहे थे। जी०टी० रोड पर यात्रा चल रही थी। आसपास के गांव दिख रहे थे । जापानी मित्रों ने जयप्रकाश जी से कहा-अरे ! हमने तो सुना था कि भारत बहुत गरीब देश है, पर हमें तो लगता है कि यह बहुत समृद्ध देश है, क्योंकि हमने देखा कि स्थानस्थान पर लोग एकत्रित होकर बैठे हैं, तम्बाकू पी रहे हैं, गप्पं कर रहे हैं । गरीब देश के लोगों के पास इतना समय ही कहां रहता है कि वे परस्पर गप्पे करते रहें। वे तो निरन्तर श्रम करते रहते हैं। इस स्थिति से तो यह ज्ञात होता है कि यहां के लोग समृद्ध हैं। गरीब देश का आदमी इतना कर्मठ और श्रमशील होता है कि उसके पास निकम्मा समय ही नहीं होता है ।
भारत के लोगों में आलस्य अधिक है। इसका कारण भौगोलिक भी हो सकता है । यह गरम देश है । गरम देश में आलस्य ज्यादा होता है । गरमी में हमारे हृदय की धड़कन तेज हो जाती है । गरिष्ठ भोजन करने से भी हृदय की धड़कन बढ़ती है और आवेश में भी हृदय की धड़कन बढ़ती है। रक्त की क्रिया में भी अन्तर आ जाता है और आलस्य की मात्रा भी बढ़ जाती है ।
इस प्रकार शिक्षा के क्षेत्र में ये पांच बाधाएं हैं-अहंकार, क्रोध, प्रमाद, रोग और आलस्य ।
जागरूकता का विकास अपेक्षित लगता है, पर उन लोगों में जागरूकता कम मिलती है जिनका जीवन केवल यांत्रिक होता है, कोरा अनुशासनात्मक होता है । भारतीय संस्कृति का यह प्रखर स्वर रहा है कि बाहरी अनुशासन के साथ-साथ भीतरी अनुशासन भी रहे । परानुशासन के साथ-साथ आत्मानुशासन भी जागे । जहां केवल परानुशासन होता है और आत्मानुशासन नहीं होता, वहां व्यक्तित्व का विकास नहीं होता। उससे केवल यांत्रिक विकास हो सकता है।
पुलिस, सेना, मजदूर आदि-आदि में प्रतिबद्ध अनुशासन होता है। वहां आत्मानुशासन नहीं होता। जहां आत्मानुशासन नहीं होता, वहां जागरूकता का विकास नहीं हो सकता।
आज भारतीय जीवन के पूरे घटकों में कमियां और खामियां महसूस हो
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