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एकला चलो रे
है । कुछेक व्यक्तियों में विस्मृति की बड़ी मात्रा होती है। व्यंग्य है। वह हमारी चेतना की स्थिति को बहुत स्पष्ट करता है । व्यंग्य तीखा है। __दो बहनें मिलीं । परस्पर बात चल पड़ी । एक स्त्री ने कहा-मेरा पति बहुत भुलक्कड़ है । एक दिन बाजार में गया सब्जी लाने के लिए। थैला हाथ में लिए चला । बाजार में घूम-घामकर घर लौटा । आते ही पूछा-अरे ! मैं बाजार गया था, पर याद नहीं रहा कि मैं बाजार क्यों गया हूं? कितना भुलक्कड़ !
दूसरी स्त्री बोली-अरे ! बस इतना ही भुलक्कड़ ! मेरा पति इससे बहुत आगे है । यदि उसके भुलक्कड़पन की बात सुनोगी तो आश्चर्यचकित रह जाओगी । एक दिन की बात है। वह अपने मित्रों के साथ बाजार में घूम रहा था । अकस्मात् ऐसा योग मिल गया कि मैं उधर से निकली । मुझे देखते ही उसने कहा-बहनजी ! नमस्ते । आपको कहीं देखा है। आपकी सूरत परिचित-सी लगती है । कितनी विस्मृति !
विस्मृति एक व्यापक बीमारी है । कुछेक लोग इसके शिकार हो जाते हैं। उन्हें अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है।
जीवन में स्मृति और विस्मृति का सन्तुलन होना चाहिए। हम याद भी रख सकें और भूल भी सकें। याद रखना ही पर्याप्त नहीं होता, भूलना भी आवश्यक होता है । जीवन की अनेक घटनाएं ऐसी होती हैं जिनको भूल जाना ही श्रेयस्कर होता है । कुछ प्रिय घटनाएं भी भूलने योग्य होती हैं और अप्रिय घटनाएं भी भूलने योग्य होती हैं। यदि उनका भार ढोते ही जायें तो दुःख का कहीं अन्त नहीं होगा। हम आवश्यक बातों को याद रखें और अनावश्यक बातों को भूलते चले जायें।
अपने कर्तव्य की विस्मृति शिक्षा की बहुत बड़ी बाधा है । - चौथी बाधा है-रोग। शारीरिक रोग भी शिक्षा में बाधा उपस्थित करता है । रुग्ण शरीर से उतना प्रयत्न नहीं किया जा सकता जितना शिक्षा के लिए आवश्यक होता है।
पांचवी बाधा है-आलस्य । यह सबसे बड़ी बाधा है। आदमी अलसाया हुआ रहता है । उससे स्वतन्त्र चेतना का विकास नहीं होता। जहां आदमी को यह अनुभूति होती है कि यह काम करना पड़ रहा है, वहां आदमी अलसायेगा, बहाना निकालने का प्रयत्न करेगा। जहां आदमी अपनी स्वतन्त्र इच्छा और स्वतन्त्र चेतना से काम करता है, वहां आलस्य नहीं सताएगा।
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