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________________ "जागरूकता किसी सामग्री की जरूरत नहीं होती। यह व्यक्तिगत प्रश्न है। अपना-अपन श्वास और अपने श्वास को जानना, देखना, अनुभव करना । यह नितांत वैयक्तिक प्रश्न है, वैयक्तिक प्रयोग है । यद्यपि यह प्रयोग समूह में हो रहा है, पर है वैयक्तिक । अपने-अपने श्वास को देखना, अनुभव करना-यह हमारी शिक्षा का प्रायोगिक रूप है। हम केवल सैद्धान्तिक शिक्षा को ही शिक्षा न मानें । सैद्धान्तिक शिक्षा के द्वारा हमारी बौद्धिक चेतना का विकास होता है और प्रायोगिक शिक्षा के द्वारा हमारी अनुभव की चेतना का विकास होता है। शिक्षा के बाधक तत्त्व पांच हैं-अहंकार, क्रोध, प्रमाद, रोग और आलस्य। व्यक्ति में अहंकार होता है। कोई व्यक्ति ऐसा नहीं है जो अहंकार से मुक्त हो। अहंकार की ग्रन्थि और ममकार की ग्रन्थि-इन दो ग्रन्थियों में प्रत्येक व्यक्ति बन्धा हुआ है। व्यक्ति अहंकार के कारण सोचता है-यह क्यों करूं? यह प्रयोग क्यों करू ? प्रयोग की आवश्यकता ही क्या है ? अहंकार बहुत बड़ी बाधा है। व्यक्ति में अहंकार की भावना के साथ हीनता की ग्रंथि भी सघन होती है । ये दोनों ग्रंथियां विकास में बाधक बनती हैं। हमें इन ग्रन्थियों की सीमा को पार करना है। हमारा व्यक्तित्व ग्रहणशील बने । प्रत्येक कल्याणकारी बात को हम ग्रहण करने के लिए तैयार रहें। हर आदमी को इतना विनम्र विद्यार्थी रहना जरूरी है, पूरे जीवन भर विद्यार्थी रहना जरूरी है, जिससे उसकी ग्रहणशीलता प्रतिदिन बढ़ती रहे। कहीं प्रतिरोध न आए। अहंकार बहुत बड़ी बाधा है। दूसरी बाधा है---क्रोध । जब क्रोध उभरता है तब शिक्षा का ग्रहण नहीं हो सकता। उत्तेजना की स्थिति में कोई किसी बात को स्वीकार नहीं कर सकता । शांत स्थिति में ही कोई बात स्वीकृत होती है। . तीसरी बाधा है-प्रमाद । प्रमाद का अर्थ है-मूर्छा की चेतना। हर बात में मूर्छा आती है। नशीली वस्तुओं का सेवन करना ही प्रमाद नहीं होता । बिना मादक वस्तुओं के सेवन से भी हमारी चेतना में मूर्छा की स्थिति होती है । प्रमाद का एक अर्थ है-भूल जाना । आदमी भूल जाता है। उसमें तब समय का बोध नहीं रहता कि उस समय क्या करना है क्या नहीं करना है । कर्तव्य का बोध विस्मृत हो जाता है। स्मृति और विस्मृति-- दोनों साथ-साथ चलती हैं। स्मृति हमारे जीवन के लिए आवश्यक है तो विस्मृति भी हमारे जीवन के लिए आवश्यक है। कोरी स्मृति ही हो तो आदमी तनाव से भर जाता है। कोरी विस्मृति ही हो तो आदमी का व्यवहार नहीं चल सकता। स्मृति और एक विस्मृति दोनों का सन्तुलन अपेक्षित Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003058
Book TitleEkla Chalo Re
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherTulsi Adhyatma Nidam Prakashan
Publication Year1985
Total Pages320
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size14 MB
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