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एकला चलो रे
गया।
दूसरा स्रोत है--संकल्पशक्ति। संकल्प का भी यही सूत्र है । इसके द्वारा भी बड़े-बड़े काम किए जा सकते हैं । संकल्प के साथ भी यह बात जुड़ी हुई है। संकल्प के साथ किसी को ऊपर उठाया जा सकता है, किसी का भला किया जा सकता है तो किसी को मारा भी जा सकता है।
संकल्प के द्वारा दूसरे का भला भी किया जा सकता है और संकल्प के द्वारा दूसरे का विध्वंस भी किया जा सकता है। आसन और प्राणायाम के द्वारा बहुत लाभ भी उठाया जा सकता है और बहुत हानि भी उठाई जा सकती है।
तीसरा स्रोत है--आसन । कल ही एक बहन आयी थी। बड़ी जिज्ञासु थी। ध्यान करने के लिए उसने कहा कि मैंने एक 'योगा' के शिवर में भाग लिया, ध्यान तो हट गया, योगा का मतलब कोरा आसन रह गया । उस शिविर में भाग लिया और शीर्षासन किया । न जाने क्या स्थिति बनी, ऐसी उलझ गई कि ५०,००० रु० खर्च किए, अब कुछ ठीक हो पायी हूं। आसन बहुत खतरनाक भी होता है और आसन बड़ा भला करने वाला भी होता है।
चौथा स्रोत है-प्राणायाम । प्राणायाम की भी यही स्थिति होती है । प्राणायाम तारने वाला भी होता है और प्राणायाम मारने वाला भी होता है।
ये सारे साधन हैं--ऊर्जा के संवर्धन के ।
पांचवां साधन है सूर्य की आतापना । जैन लोगों में बहुत परम्परा रही है—आतापना की। सूर्य की आतापना प्राण-शक्ति को बढ़ाने का बहुत बड़ा स्रोत है।
छठा स्रोत है-अर्जा केन्द्रों पर ध्यान ।
ये छह बड़े साधन हैं, जिनके द्वारा प्राण-शक्ति का विकास किया जा सकता है और कारण-शरीर या सूक्ष्मतर शरीर पर पहुंचा जा सकता है । इन साधनों का हम सम्यक् प्रयोग करें।
प्रेक्षाध्यान का एक सूत्र है-क्रमिक विकास और सम्यक नियोजनकेवल आसन नहीं, केवल प्राणायाम नहीं। केवल प्राणायाम को भी मैं खतरनाक मानता हूं। हम दीर्घश्वास का प्रयोग करते हैं-दीर्घश्वास प्रेक्षा । समवर्ती श्वास का प्रयोग करते हैं-समवर्ती श्वास प्रेक्षा । यह प्राणायाम भी है और ध्यान भी है । केबल प्राणायाम का प्रयोग नहीं करते, किन्तु प्राणायाम के साथ ध्यान का प्रयोग करते हैं। ध्यान साथ में होता हैं तो हर
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