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प्राण ऊर्जा का संवर्धन
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पहला स्रोत है— उपवास । उपवास की परम्परा भारतीय धर्मों में बहुत है । प्रत्येक धर्म के साथ उपवास की परम्परा जुड़ी हुई है किन्तु उपवास के बारे में हमारी जानकारी ठीक नहीं है उपवास को भी हमने तोड़कर स्वीकार किया है। लंबी-लंबी तपस्याएं होती हैं । दस, बीस, तीस, चालीस, पचासपचास दिन के उपवास होते हैं । बहुत उपवास होते हैं । उपवास के द्वारा प्राण-शक्ति बहुत बढ़ती है । किन्तु प्राण-शक्ति बढ़ती है, उसका परिणाम भी होता है । और यह एक आम कहावत बन गई कि तपस्या तो बहुत करता है पर गुस्सा भी बहुत आता है । प्राण-शक्ति बढ़ेगी तो गुस्सा क्यों नहीं आएगा ? प्राण-शक्ति तो सब कार्यों को बढ़ाती है । प्राण-शक्ति अगर अच्छी बात को बढ़ाती है तो गुस्से को भी बढ़ाएगी । बासना को भी बढ़ाएगी। उपवास वासना को भी उभार सकता है, गुस्से को भी उभार सकता है । उपवास तपस्वी को दुर्वासा भी बना सकता है । प्राण-शक्ति का काम है, क्यों नहीं करेगी वह ? किन्तु उपवास के साथ एक दूसरी बात थी कि जो प्राण-शक्ति बढ़े उसका खर्च कैसे करें ? बहुत बढ़ी हुई प्राण-शक्ति भी बड़ी • खतरनाक होती है। आग को जला देना एक बात है और आग से चूल्हा बनाना एक बात है । जिस व्यक्ति ने आग से जलाने की बात सोची, उसने चूल्हा बना लेने की बात भी सोच ली । चूल्हा नहीं बनाया गया तो पता नहीं आग कैसे फैल जाए । इसलिए रसोई बनाने वाले को सबसे पहले सुरक्षा करनी पड़ी। आग जलाई तो पहले ही चूल्हा बना लिया, आग को बांध दिया । तो प्राण-शक्ति को भी बांधने की जरूरत है, एक चूल्हा बनाने की जरूरत है । प्राण-शक्ति को बढ़ाते मत चले जाओ, बड़ा खतरनाक होगा । चूल्हा बनाना सीख लो। उसे बांधना सीख लो । उपवास यानी ध्यान का प्रयोग | कोरा उपवास नहीं चल सकता। दोनों साथ-साथ चलेंगे । एक चूल्हा है । जो प्राण-शक्ति बढ़ती है उसको यह नियंत्रित कर देता है । उसको खपाता है, उसको काम में लगा देता है ।
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शक्ति का विकास और शक्ति का सम्यक् नियोजन —- ये दोनों बातें साथसाथ चलें, तब हमारी चेतना का विकास संभव हो सकता है । एक बात छूट गई। कोरा उपवास तो बच गया और ध्यान वाली बात छूट गई। कोरा क्रोध को उभारने वाला, वासना को उभारने वाला और वृत्तियों को उभारने वाला तंत्र तो बच गया और उनको शमन करने वाला तथा उनका शमन करके अगली शक्तियों को विकसित करने वाला तंत्र हमारे हाथ से निकल
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