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________________ २१६ एकला चलो रे केवल नाभि पर ध्यान करेंगे, खतरनाक काम होगा। नाभि पर ध्यान किया और दूसरा शक्ति केन्द्र हमारा कण्ठ है उस पर ध्यान केन्द्रित कर लें तो खतरे सारे टल जाएंगे । ध्यानशक्ति का विकास हो जाएगा। किन्तु यहां शक्ति के विकास के साथ-साथ जो खतरा पैदा होता है, जो वासनाएं, जो भय, जो प्रवृत्तियां पनपती हैं (एड्रीनल ग्लैण्ड से जो अधिक एड्रीनेलिन का स्राव होता है, वह प्रवृत्तियों को उभारता है) उनका शमन करने के लिए शक्ति केन्द्र पर (कण्ठ पर) ध्यान किया तो वह दबाव उनका कम हो जाएगा और शक्ति का संवर्धन हो जायेगा।' हमें नियमों को समझना भी बहुत जरूरी है। जब तक नियमों को नहीं जान लेते, जब तक शरीर के रहस्यों को नहीं जान लेते, केवल एक बात को पकड़कर हम चल पड़ते हैं तो कठिनाई पैदा होती है। प्राण का बहुत बड़ा केन्द्र है यह नाभि । दूसरा केन्द्र है---गुदा का भाग। रीड़ की हड्डी का निचला सिरा जहां स्पाइनल कार्ड पूरा होता है, उसके नीचे बहुत पतले-पतले जैसे चांदी के तार हों, जाल बिछा हुआ है। बहुत बड़ी शक्ति का स्रोत है। वहां बहुत बड़ी शक्ति है। जो प्राण-ऊर्जा नाभि के आसपास पैदा होती है, वही तो शक्ति को जेनरेट करती है और उसका भंडार होता है शक्ति केन्द्र में। तीसरा भंडार है हमारा विशुद्धि केन्द्र । यह बहुत बड़ा शक्ति का स्रोत है। शरीरशास्त्र को पढ़ने वाला विद्यार्थी यह जानता है कि थायराइड ग्लैण्ड ठीक काम नहीं करती है तो शरीर की सारी क्रियाएं गड़बड़ जाती हैं । हमारा चयापचय ठीक नहीं होता । पुरानी कोशिकाओं का मिटना और नयी कोशिकाओं का निर्माण होना सारा मिट जाता है तो शरीर की सारी स्थिति गड़बड़ा जाती है। थायराइड का ठीक काम नहीं होता है तो आदमी या तो नाटा बन जाता है या बड़ा भयंकर बन जाता है। फिर दस फीट से भी ज्यादा आगे बढ़ने लग जाता है । यह बहुत बड़ा शक्ति का केन्द्र है हमारा । इन तीनों शक्ति केन्द्रों का विकास कर लेने पर फिर चेतना के विशिष्ट केन्द्रों को जागृत करने की हमारी क्षमता बढ़ जाती है, मानसिक क्षमताएं भी बढ़ जाती हैं । उनके विकास के कुछ स्रोत हैं—उपवास, संकल्प-शक्ति, आसन प्राणायाम, आतापना और ऊर्जा-केन्द्रों पर ध्यान । ये छह स्रोत हैं प्राण-शक्ति के संवर्धन के। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003058
Book TitleEkla Chalo Re
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherTulsi Adhyatma Nidam Prakashan
Publication Year1985
Total Pages320
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size14 MB
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