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________________ प्राण-ऊर्जा का संवर्धन २१५ सारे खतरे नाभि के पास पैदा होते हैं । जिस व्यक्ति की चेतना नाभि के आसपास घूमती है, वह बहुत खतरों में फंस जाता है । क्रोध, उत्तेजना, भय, वासना-सारे इस पांच-छह अंगुल के क्षेत्र में फैले हुए हैं । जो अपनी चेतना को नाभि के आसपास ही घुमाता है वह व्यक्ति बहुत खतरों में फंस जाता है। किन्तु यह नाभि का क्षेत्र बहुत महत्त्वपूर्ण भी है। कोई भी साधना करने वाला व्यक्ति जब तक नाभि के केन्द्र को, इस प्राण-शक्ति के केन्द्र को जागृत नहीं कर लेता, अच्छी तरह नहीं समझ लेता तब तक वह आगे नहीं बढ़ सकता। आगे बढ़ने के लिए शक्ति चाहिए। खुदाई करनी है नीचे से चाहे पत्थर निकालना है, चाहे पन्ना निकालना है, चाहे हीरा निकालना है, चाहे सोना निकालना है-गहरी खुदाई करनी पड़ेगी और खुदाई करने के लिए विस्फोटक पदार्थ चाहिए। अगर विस्फोटक पदार्थ नहीं है तो खुदाई नहीं हो सकती । कुल्हाड़ी के बल पर कभी खुदाई नहीं हो सकती। फिर तो बड़े विस्फोटक पदार्थ चाहिए। वह नाभि का केन्द्र बड़ा विस्फोटक पदार्थ है । जो साधक उसका उपयोग करता है विस्फोटक सामग्री के रूप में, उसे बड़ी शक्ति प्राप्त होती है । जो व्यक्ति इस ऊर्जा को, इस शक्ति को नहीं समझता वह बड़ा काम नहीं कर सकता । चेतना की बड़ी उपलब्धि करने के लिए तैजस केन्द्र को जागृत करना जरूरी है। हम तेजस केन्द्र पर ध्यान केन्द्रित करते हैं। इस बात की सावधानी के साथ कि यह खतरनाक काम है। इस पर ध्यान करते हैं-यांच-पांच मिनट करते हैं और समय आने पर आधा-आधा घंटा कर लेते हैं । किन्तु जहां खतरे होते हैं वहां सावधानी भी बरती जाती है । तैजस पर ध्यान करने वाला, नाभि पर ध्यान करने वाला, खतरों से बच सकता है । जो इस क्षेत्र में चलता है केवल पुस्तकों के सहारे, वह बहुत बड़ी कठिनाइयां उठा लेता है। एक व्यक्ति आया । हमारे पास आकर बोला, 'मैंने योग की कुछ पुस्तकें पढ़ीं, मैंने नाभि पर ध्यान केन्द्रित करना शुरू कर दिया, क्योंकि इसका काफी महत्त्व लिखा था । परिणाम यह हुआ कि मेरा गुस्सा बढ़ गया, वासना बढ़ गयी, मैं तो और कठनाइयों में फंस गया । मैं तो प्रयत्न कर रहा था उनसे छुट्टी पाने के लिए, किन्तु अधिक कठिनाइयों में फंस गया ।' मैंने कहा-'तुमने गलत काम किया, ऐसा नहीं करना चाहिए था। यह पढ़ा, लेकिन जब तक पूरी बात को नहीं जान लो, तब तक बात ठीक नहीं होती। पूरी बात जान लेनी चाहिए और पूरी बात जान लेने पर खतरे भी अपने आप कम हो जाते हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003058
Book TitleEkla Chalo Re
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherTulsi Adhyatma Nidam Prakashan
Publication Year1985
Total Pages320
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size14 MB
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