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________________ २११ प्राण-ऊर्जा का संवर्धन थे । आज भी नेपाल में कुछ एसे विशेषज्ञ हैं जो भूगर्भ के बारे में बहुत जानकारी रखते हैं । उसने सब कुछ देखा, इधर-उधर किया और कहा कि एक हथौड़ा लाओ। एक कमरे के भीतर ले गया । खुदाई करवाई। एक शिला निकली, दूसरी शिला निकली, तीसरी निकली । खोदते-खोदते एक सीमा यह आयी कि इतना विशाल रत्नों का भण्डार भरा पड़ा था कि एक तो क्या, चाहे तो समूचे देश को भी धनी बना दे। बड़ा आश्चर्य होगा आपको कि इतना विशाल खजाना है और आदमी भीख मांग रहा है । ठीक मैं इसी स्थिति से तुलना करना चाहता हूं कि जैनों की भी यही स्थिति बन गई । उनका पूरा साहित्य, महावीर की पूरी वाणी ध्यान की वाणी है । महावीर ने स्वयं ध्यान के प्रयोग किये । बारह वर्ष से अधिक समय तक ध्यान किया । जब तक वे केवली नहीं बने थे, उनका सारा समय ध्यान करने में बीता । बहुत प्रयोग किए। केवली हो जाने के बाद उन्होंने जो कहा, ध्यान के बारे में कहा । उनकी सारी उपदेश-वाणी, ध्यान की वाणी है । ध्यान के रहस्यों को प्रकट करने वाली, उजगार करने वाली वाणी है । किन्तु समय की अवधि होती है, समय का परिपाक होता है। ऐसी स्थिति आयी कि जैन आचार्य और बड़े-बड़े मुनि भी साम्प्रदायिक बातों में उलझ गए, ऊपर की खींच-तान और पक्षपात की बातों में ज्यादा उलझ गए । ध्यान के जो महान रहस्य थे वे उनके हाथों से निकल गए, छूट गए । और फिर मन्त्र की शक्ति में उलझ गए, शक्ति प्रदर्शन और चमत्कार में उलझ गए। - चमत्कार की बात बड़ी लुभावनी लगती है । ऐसा लगता है कि जो संत, “जो साधक चमत्कार की दशा में पैर रख देता है, वह अपनी नियति को अंधकार के साथ जोड़ देता है । एक बार तो आकर्षण लगता है किन्तु वह आसक्ति में और मूर्छा में इतना फंस जाता है कि अन्य सचाई सारी लुप्त हो जाती है। एक बड़े जैन विद्वान् ने, जो अंतर्राष्ट्रीय ख्याति के विद्वान् हैं, आकर कहा-'आपने चैतन्य-केन्द्रों की चर्चा दूसरे ग्रन्थों से उधार ले ली ?' मैंने कहा-'आप कह सकते हैं । मैं अन्यथा भी स्वीकार नहीं करूंगा। क्योंकि आपको जब ज्ञात भी नहीं है, आप यही जानते हैं कि चक्रों का वर्णन हठयोग में है। तन्त्रशास्त्र में छह चक्रों का या नौ चक्रों का वर्णन है । वहां से हमने ले लिया और जैनों में इसकी कोई चर्चा नहीं है । यही तो आप कहना Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003058
Book TitleEkla Chalo Re
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherTulsi Adhyatma Nidam Prakashan
Publication Year1985
Total Pages320
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size14 MB
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