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________________ २१० एकला चलो रे व्यवस्था के तो नासमझ आदमी जा सकता है। आन्तरिक्ष शक्ति का स्रोत, ऊर्जा का स्रोत जब जाग जाता है, चेतना की स्थिति बिलकुल बदल जाती है । ऊर्जा का संवर्धन कैसे हो ? और सूक्ष्मतर शरीर के साथ हम सम्पर्क कैसे कर सके ? आज हमने शरीर-प्रेक्षा का एक और नया प्रयोग किया, आज तक नहीं किया था। सबसे पहले हमने मध्यवर्ती शरीर की प्रेक्षा की। उसे देखने का अभ्यास किया। फिर पीछे से आगे और आगे से पीछे शरीर को देखने का अभ्यास किया। फिर दाएं से बाएं और बाएं से दाएं शरीर को देखने का अभ्यास किया। फिर पूरे शरीर को एक साथ देखने का अभ्यास किया। यह शक्ति-संवर्धन का नया प्रयोग है। बहुत लोग कहते हैं कि जैन साधना पद्धति में न चैतन्य-केन्द्रों का वर्णन है, न लेश्या-ध्यान का कहीं वर्णन है। यह सारा इधर-उधर से ले लिया गया है। मुझे बड़ा आश्चर्य होता है कि क्यों ऐसा कहा जाता है ? पर इसे मैं कोई कटु भाव में नहीं लेता हूं। इसलिए नहीं लेता हूं कि जो लोग कहते हैं वे तो नहीं जानते । आश्चर्य इस बात का है कि जैन विद्वान् भी नहीं जानते । शरीर प्रेक्षा, चैतन्य केन्द्र प्रेक्षा के बारे में जैन साधना पद्धति में जो है, उसे एक भी जैन विद्वान् नहीं जानता। मैं विद्वानों की बात छोड़ देता हूं किन्तु एक भी आचार्य और जैन मुनि इस बात को नहीं जान रहा है, क्योंकि जो बात छूट जाती है, जब चाबियां खो जाती हैं तो सारी बात विस्मृत हो जाती है। व्यक्ति के घर में विशाल धन था, कोई कमी नहीं थी, पर घर का मालिक "भीख मांग रहा था । घर तो बहुत बड़ा लम्बा-चौड़ा किन्तु सारा व्यवसाय समाप्त हो गया । व्यापार-धन्धा चलता नहीं था। खाने को कुछ मिलता नहीं था। विवशता आ गई, बाध्यता आ गई, फिर लाचार होकर रोटी के ‘लिए भी दूसरों के सामने साथ पसारना पड़ रहा है । एक ज्योतिषी ने देखा कि आदमी तो अच्छा लग रहा है, ऐसा लग रहा है कि कुछ है पर भीख क्यों मांग रहा है, हाथ क्यों पसार रहा है दूसरों के सामने ? पूछा कि भाई, ऐसा क्यों कर रहे हो ? उत्तर मिला-क्या करू, मांगना तो नहीं चाहता, बहुत -बड़े घराने का हूं पर ऐसी विवशता ओ गई कि इसके सिवा कोई चारा नहीं। बात समझ में नहीं आयी। चलो, कहां है तुम्हारा घर ? आया, देखा। पुराने ज्योतिषियों में एक विशेषता होती थी कि वे भूगर्भ के भी विशेषज्ञ होते Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003058
Book TitleEkla Chalo Re
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherTulsi Adhyatma Nidam Prakashan
Publication Year1985
Total Pages320
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size14 MB
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