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प्राण-ऊर्जा का सवधन
कल एक भाई ने पूछा कि जैसे सूक्ष्म शरीर के स्तर पर काम करने वाली चेतना का रूप हमने जाना वैसे ही सूक्ष्मतर शरीर पर काम करने के बारे में कुछ जानना चाहते हैं । बहुत छोटा-सा प्रश्न किन्तु बहुत बड़ा प्रश्न है। इतनी विराट चेतना के विषय में जानना एक बहुत बड़ी घटना है। प्रत्येक बड़े काम के लिए बड़ी ऊर्जा की जरूरत होती है। छोटे-मोटे काम, छोटी-मोटी शक्ति से सम्पन्न किए जा सकते हैं। किन्तु बहुत बड़ा काम करने के लिए ऊर्जा का बहुत बड़ा संग्रह चाहिए, ऊर्जा का भण्डार चाहिए। ध्यान का प्रयोग ऊर्जा के संवर्धन का प्रयोग है। हमारी शक्ति कम नहीं है । शारीरिक शक्ति बहुत है, विलक्षण शक्ति है । एक व्यक्ति अपनी शारीरिक शक्ति का विकास इतना कर सकता है कि छाती पर से हाथी भी निकल सकता है । हाथ खड़ा कर दिया। दस आदमी लगे, पचास आदमी लग जाएं, हाथ टस-से-मस नहीं हो सकता। यह बहुत छोटी बात है । वासुदेव की शक्ति का वर्णन आता है। चक्रवर्ती की शक्ति का वर्णन आता है । अद्भूत है शरीर की शक्ति । एक वासुदेव खड़ा हो जाए, दुनिया भर की वाहनियां, चाहे गजसेना, अश्वसेना, रथसेना, पदातिसेना-सारी सेनाएं, सारी शक्तियां शेष हो जाती हैं । एक रस्सा बांध दें पैर पर और उस रस्से को खींचने लग जाएं तो भी वासुदेव का पैर इंच भर भी नहीं हिल सकता ।
। तीर्थंकर की अमाप्य शक्ति होती है। इन्द्र भी आ जाए तो तीर्थकर की शक्ति को विचलित नहीं कर सकता । बहुत बड़ी है हमारी शरीर की शक्ति । हम अपनी शक्ति का एक करोड़वां-अरबवां भाग भी काम में नहीं ले रहे हैं । शरीर से बहुत बड़ी शक्ति है हमारे मन की। जहां शरीर की शक्तियों की सीमा समाप्त हो जाती है, वहां से मन की शक्ति का प्रारम्भ होता है। मन की बहुत बड़ी शक्ति है । इसकी शक्ति का छोटा-सा कण भी हमारे काम में नहीं आ रहा है। ___उससे आगे है आत्म की शक्ति । यह बहुत बड़ी शक्ति है । इतनी विशाल शक्ति कि जिसके सहारे, जिसके इंगित पर मन की और शरीर की शक्तियां
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