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का दर्शन होता है ।
एक बहुत मार्मिक कहानी है। पुजारी था बहुत गरीब । उसे सपना आया आज मेरा मन्दिर घेवरों से भर गया । अब क्या करू ! इतने घेवर कौन खाए ! उसने सोचा, समूचे गांव को भोज दूं । छोटा गांव था । सबको जिमाऊं ! सपना टूटा, उठा और सबको निमन्त्रण दे दिया आज किसी को रसोई नहीं बनाना है, सबका भोजन मेरे घर है । लोगों ने सोचा कि गरीब आदमी है, क्या खिलाएगा ? किसी ने पूछ लिया कि 'क्या खिलाओगे ?' उसने कहा- 'तुम उसकी चिन्ता मत करो। ऐसे ही निमन्त्रण देने थोड़े आया हूं। कुछ है, तभी तो निमन्त्रण देने आया हूं। तुम चिन्ता क्यों करते हो ?' लोगों ने सोचा - पुजारी है, आखिर कहीं से कोई भेंट- पूजा आ गई होगी । उस दिन गांव में कोई चूल्हा नहीं जला। पुराने जमाने को बात है । चाय-पानी होता नहीं था । चूल्हा जलाने की जरूरत नहीं हुई। जला हो नहीं । सब लोग प्रतीक्षा में । न्यौता भी दे दिया । आकर देखा तो मंदिर में तो घेवर एक भी नहीं हैं सोचा, अब क्या करूं ? सबको न्यौता दे आया और घेवर हैं ही नहीं, अब क्या करूं ? उदास होकर बैठ गया । दस बज गए, बारह बजने को आए । सबने सोचा - निमन्त्रण तो दे दिया पर कुछ दी ही नहीं रहा है, क्या बात है ? दो-चार लोग आए । आकर किवाड़ खटखटाए । बोले, 'भोजन कब कराओगे ? इतनी देर हो गई ।' पुजारी बोला, 'अरे भाई, क्या करूं, भूल हो गई। आप जरा सुस्ताएं। एक बार सो लेता हूं, फिर सपना आए और घेवर बन जाए तो भोजन कराऊंगा ।'
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सपनों के सहारे निमन्त्रण देने वाला व्यक्ति कैसा होता है, इस सचाई को हम समझ सकते हैं । महानता वह होती है जो सपनों के सहारे को छोड़कर यथार्थ की धरती पर चरण बढ़ाए ।
हमारे जीवन में भी ऐसी बहुत सारी घटनाएं घटित होती हैं, पर हम सपनों को यथार्थ मानकर कितने अरमानों को संजोते चले जा रहे हैं ! कितने विचारों को विकसित करते चले जाते हैं । और जब समय आता है तो ठीक हमें अनुभव होता है वह तो सपना था । फिर कोई दूसरा सपना आएगा, घेवर बनेगा तब यह काम होगा ।
एकला चलो रे
महानता के लिए दूसरी बात और चाहिए। वह है-कल्पना-मुक्ति । काल्पनिक राज्य भंग हो जाने पर जो व्यक्ति पछतावा नहीं करता, उसमें महानता जागती है | हमारे जीवन में बहुत सारी कल्पनाए होती हैं । कल्पना
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