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सूक्ष्मलोक की यात्रा
१६६ मुझे क्षुद्रता का अनुभव हुआ ।' ___'जब कुछ पाने के लिए मैंने चापलूसी की, उसी क्षण मुझे अपनी क्षुद्रता का अनुभव हुआ।' . बहुत चलता है यह चापलूसी का काम । यह चमचागिरी बहुत चलती है। थोड़ा-सा स्वार्थ सधे तो आदमी न जाने क्या से क्या करने लग जाता है। थोड़ा-सा स्वार्थ सध जाए तो दुनिया भर की चापलूसी करने लग जाता है। पता नहीं पुराने जमाने में कैसा चलता था। कुछ लोग बड़ी चापलूसी करते थे । राजा के पास गया और कुछ याचना की, विरुदावली गायी। कुछ मिला नहीं तो रूठ गया। तत्काल बोला-'राणा, तू तो भाटो, मोटा माखर माहिलो ।' राणा, तू पत्थर है बना-बनाया, बड़े पहाड़ का पत्थर है, कुछ भी नहीं। जब उसे कुछ मिला, इतने में प्रशंसा शुरू हो गई-करराखू काठो, शंकर ज्यूं सेवा करू ।' कितना बदल गया एक क्षण में । नहीं मिला तो पत्थर बन गया । मिला तो शंकर बन गया । . ___ जीवन में हर व्यक्ति के ये क्षुद्रता के क्षण आते हैं। क्षुद्रता का जीवन जीना एक बात है और उसका अनुभव करना दूसरी बात है। जो व्यक्ति साधना के पथ पर आरोहण करता है, कदम आगे बढ़ाता है, उसे स्पष्ट अनुभव होने लग जाता है कि जीवन के किन-किन क्षणों में क्षुद्रता का अनुभव होता है और उन क्षणों से कैसे बचा जा सकता है।
महानता के अनुभव भी होते हैं। जिस जीवन में क्षुद्रता है, उस जीवन में महानता भी छिपी हुई है । क्षुद्रता कहीं बाहर से नहीं आती और महानता भी कहीं बाहर से नहीं आती। जीवन में क्षुद्रता और महानता, दोनों साथसाथ चलते हैं । इतना-सा अन्तर होता है कि एक पर्दे पर आती है तो दूसरी पर्दे के पीछे रह जाती है। दूसरी पर्दे पर आती है तो पहली पर्दे के पीछे चली जाती है।
ध्यान का एक अर्थ होता है कि क्षुद्रता को पर्दे के पीछे धकेल देना, महानता का विकास करना । जब-जब आदमी सपनों की दुनिया से हटकर यथार्थ का जीवन जीना शुरू करता है तो उसे अपनी महानता का अनुभव होता है। एक है सपनों की दुनिया और एक है यथार्थ की दुनिया । यथार्थ की दुनिया में जीने वाले को अपनी महानता का अनुभव होता है। जो सपनों की दुनिया के सहारे ही जीवन चलाता है, वह हमेशा दयनीय दशा में होता है। ध्यान द्वारा एक चेतना जागती है और सपने टूट जाते हैं, यथार्थ
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